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9. ऊन-जिसमें अक्षर, मात्रा, पद आदि कम हों, वह सूत्र ऊन दोष वाला कहा जाता है। जैसे-जैसे कृतक होने से शब्द अनित्य है। यहां उदाहरण की कमी है। ___10. पुनरुक्त-एक ही बात को पुनः-पुनः दोहराना पुनरुक्त दोष कहलता है।
11. व्याहत-जिस सूत्र में पूर्व कथन का पर-वाक्य से खण्डन होता है, उसे व्याहत दोष कहते हैं।
12. अयुक्त-जो वाक्य उपपत्ति से युक्त न हो, उसे अयुक्त दोष कहते हैं।
13. क्रम भिन्न-जिसमें पदार्थों को क्रमशः न रखा जाए, उसे क्रम भिन्न दोष कहते हैं। जैसे-श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसना और स्पर्श इन्द्रिय न कहकर घ्राण, चक्षु, श्रोत्र, स्पर्श और रसनेन्द्रिय कहना क्रमभिन्न दोष है।
14. वचन भिन्न-जिस सूत्र में विशेष्य और विशेषण में वचन भिन्न हो, उसे वचन भिन्न दोष कहते हैं।
15. विभक्ति भिन्न-जिस सूत्र में विशेष्य और विशेषण में विभक्ति भिन्न हो उसे विभक्ति भिन्न दोष कहते हैं। ____16. लिंग भिन्न-जिस सूत्र में विशेष्य और विशेषण में लिंगभिन्न हो, उसे लिंगभिन्न दोष कहते हैं।
17. अनभिहित-अपनी सैद्धान्तिक मान्यता के विरुद्ध पदार्थों का वर्णन करना अनभिहित दोष है।
18. अपद-पद्य-छन्द के सम्बन्ध में अनुचित योजना करना अपद दोष है। ___19. स्वभावहीन-जिस सूत्र में वस्तु का स्वभाव से विपरीत चित्रण किया जाए, उसे स्वभावहीन दोष कहते हैं। . 20. व्यवहित-प्रासंगिक विषय को छोड़ कर अप्रासंगिक विषय का वर्णन करना और पुनः प्रासंगिक विषय पर आ जाना व्यवहित दोष है ____21. कालदोष-जिस सूत्र में भूत, भविष्य और वर्तमान काल का ध्यान न रखा हो वह कालदोष कहलाता है। ___22. यतिदोष-पद्य या गद्य रचना में पूर्णविराम, अर्धविराम आदि का ध्यान न रखना यतिदोष है। - 23. छविदोष-जहां पर कोई विशेष अलंकार उपयुक्त हो, फिर भी उसे वहां नहीं कहना छविदोष कहलाता है।