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________________ सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं मिलता है। परन्तु ऐसी बात नहीं है। आगमों में भी सूत्र के गुण-दोषों का उल्लेख मिलता है। अनुयोग द्वार सूत्र में भी सूत्र के आठ गुणों एवं 32 दोषों का वर्णन मिलता है। नियुक्तिकार ने 32 दोषों का उल्लेख इस प्रकार किया है___1. अनृतदोष-सत्य का अपलाप करना एवं असत्य की स्थापना करना अनृत दोष है। जैसे-अनादि काल से चले आ रहे जगत को ईश्वर कर्तृक बतलाना असत्य की स्थापना करना है और आत्मा, परलोकादि के अस्तित्व का निषेध करना सत्य का अपलाप करना है। ___ 2. उपघात-हिंसा का विधान करना उपघात दोष है। जैसे-वेद-विहित हिंसा हिंसा (पाप) नहीं, धर्म है। 3. निरर्थक-जिस सूत्र में मात्र वर्णों का निर्देश हो, परन्तु उसका कोई अर्थ न निकलता हो, वह सूत्र का निरर्थक दोष है जैसे-अ आ इ ई या डित्थ-डवित्थ आदि। 4. अपार्थक-जो सूत्र असम्बद्धार्थक हो या अर्थ के संबंध से शून्य हो, उसे अपार्थक कहते हैं। जैसे-दशदाडिमानि षड्पूपा आदि। 5. छल-जहां विवक्षित अर्थ का अनिष्ट अर्थान्तर के द्वारा उपघात किया जाए, उसे छल कहते हैं। जैसे-किसी ने कहा-देवदत्त के पास नव (नया) कम्बल है। उसने ‘नव' शब्द का नवीन के अर्थ में प्रयोग किया है। परन्तु कोई व्यक्ति यह कह कर उसका विरोध करे कि उसके पास नव (9) कम्बल कहां हैं? वह नवीन अर्थ में प्रयुक्त नव शब्द को संख्यावाची बनाकर विरोध करे तो यह छल है। 6. द्रुहिल-जो सूत्र साधक को अहितकर उपदेश दे और पाप कार्य का परिपोषक हो उसे द्रुहिल कहते हैं। 7. निस्सार-जिस सूत्र में कोई युक्ति या तर्क न हो, केवल शब्दाडम्बर हो उसे निस्सार कहते हैं। 8. अधिक-जिस सूत्र में पद या अक्षर अधिक हों या एक हेतु या उदाहरण से अर्थ की सिद्धि होने पर भी कई हेतु एवं उदाहरण दिए हों, उसे अधिक दोष कहते हैं। 1. छद्दोसे अट्ठगुणे तिण्णि विय वित्ताई। एए नव कव्वरसा बत्तीसा दोस विहि समुप्पण्णा। -अनुयोग द्वार सूत्र; 46, 82
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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