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________________ द्वितीय अध्ययन, उद्देशक 1 277 रहते हैं और उसमें विभिन्न तरह के अनुभव एवं परिस्थितियां सामने आती हैं। व्यक्ति जिन पर पूरा विश्वास करता था और जिनके लिए अपना धर्म-कर्म भुलाकर सब कुछ करने को तत्पर रहता था, समय आने पर वे किस तरह बदल जाते हैं तथा उनके जीवन-व्यवहार को देखकर तथा अपनी अशक्त अवस्था का अवलोकन कर वृद्ध के मन में अपने परिजनों के प्रति जो भाव उद्बद्ध होते हैं, प्रस्तुत सूत्र में उनका बहुत ही सुन्दर विश्लेषण किया गया है। हम प्रत्यक्ष में देखते हैं कि मनुष्य वृद्ध होने के बाद प्रायः बोझ रूप बन जाता है। जब तक उसके शरीर में शक्ति रहती है, तब तक परिजन भी उसका आदर-सम्मान करते हैं, सदा उसकी सेवा-शुश्रूषा में लगे रहते हैं। यह आदर-सम्मान एवं सेवा-भक्ति उस व्यक्ति की नहीं, अपितु उससे पूरा होने वाले स्वार्थ की होती है। जब तक उसके द्वारा धन-संपत्ति के ढेर लगते रहते हैं, सुख-साधनों में अभिवृद्धि होती रहती है, तब तक उसके गुणों के गीत गाए जाते रहते हैं। परन्तु प्रायः शारीरिक शक्ति के क्षीण होते ही सारी स्थिति बदल जाती है, सुनहरा अतीत कालुष्य के वर्तमान में परिवर्तित हो जाता है। अब उसे यह विचार सत्य प्रतीत होने लगता है कि “दुनिया में काम प्रिय, है, चाम नहीं” अर्थात् जब तक काम करो, तब तक ही दुनिया का प्यार-स्नेह मिलता है, फिर नहीं। इस तरह दुनिया के अधिकांश संबंध स्वार्थ की भीति पर आधारित हैं। व्यक्ति अनेक पाप कार्य करके अपने परिवार का इस भावना से पालन-पोषण करता है कि वृद्धावस्था में इनसे मुझे सुख मिलेगा। परन्तु उस अवस्था के आते ही वे परिजन उसके लिए संक्लेश का कारण बन जाते हैं और वह उनके लिए बोझ रूप बन जाता है। क्योंकि, वृद्धावस्था में शरीर की पर्याय बदल जाती है, शरीर की शक्ति एवं तेज घट जाता है। मानसिक सहिष्णुता भी कम हो जाती है, बात-बात पर बिगड़ने लगता है। खांसी से सारे घर के वातावरण को अशांत कर देता है, जगह-जगह कफ एवं खंखार थूक-थूक के कमरे को एवं आने-जाने के मार्ग को गन्दा बना देता है। ये सारी स्थितियां लड़कों एवं पुत्र-वधुओं के लिए भयावनी बन जाती हैं। उनका सारा समय बूढ़े के द्वारा यत्र-तत्र बिखेरे गए कफ आदि को साफ करने में ही बीत जाता है। इतने पर भी उसे सन्तोष नहीं होता। उसकी नित नई मांगों एवं आकांक्षाओं से तो
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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