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________________ अध्यात्मसार :7 257 रूप से आचार-कैसा होता है। वह भी साधुजन स्वयं समझाए। इसमें भी मुख्यतः गोचरी संबंधी आचार-अन्न-पान-वस्त्र एवं शयन संबंध की गवेषणा की विधि बताना जरूरी है। इसके अतिरिक्त पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति, साधु के सत्ताइस गुण, पंचपरमेष्ठी के गुण। समाचारी को प्रकट नहीं करना चाहिए, क्योंकि जो साधु नहीं हैं, वे समझ नहीं पाते। इससे अयोग्य हाथों में सत्ता चली जाती है। गोचरी के नियमों से सुपात्र दान के नियमों से अवगत कराना जरूरी है, क्योंकि वह श्रावक का बारहवां व्रत है। बाकी अन्य बातें जहाँ-जहाँ प्रसंग-वश जो-जो योग्य हैं, उन्हें बताना। मुनि की साधना-मुनि वह है, जो बाह्याचार एवं आभ्यंतर साधना से संकल्प-विकल्प से रहित समय में स्थित रहने की साधना करता है। बाह्याचार से निमित्त शुद्धि, आभ्यंतर साधना से उपादान शुद्धि । बाह्याचारआगमानुसार। आभ्यंतर साधना-ज्ञान, ध्यान, कायोत्सर्ग, प्रभु-भक्ति आदि। : निंदा-कोई किसी व्यक्ति की निंदा कर रहा हो तब उसे प्रोत्साहन न देना, अपितु सहज-भाव से निषेध करना। यदि वह न माने तब तटस्थता बनाए रखना, क्योंकि अशुभ बातों की चर्चा करने से पाप कर्म का बन्ध होता है, ऐसे ही शुभ सत्य और सद्गुणों की चर्चा करने से पुण्य बन्धन होता है। .. प्रज्ञा-परम उत्कृष्ट रूप से, इन्द्रियों के माध्यम से किसी को जानना प्रज्ञा कहलाता है। केवलज्ञान इन्द्रियातीत है। इन्द्रियों के माध्यम से जो ज्ञान प्राप्त होता है, उसमें तथा श्रुतज्ञान का सर्वोत्कृष्ट सार प्रज्ञा कहलाती है। प्रज्ञा का एक अर्थ सम्यक् ज्ञान भी होता है। शंका, विभ्रम इत्यादि दोषों से रहित शुद्ध श्रुत-ज्ञान प्रज्ञा है। . प्रज्ञा कैसे जागृत होती है? दो प्रकार से, ऐसे तो प्रज्ञा जागरण के अनेकों उपाय हैं किन्तु इनमें ये दो मनोनिरोध के, मनःविलय के सहज सरल उपाय हैं। 1. बाह्य कुम्भक-शून्य में ठहरना, 2. सहज-स्वाभाविक श्वास के साथ रहना। श्वास के आवागमन से स्वाभाविक रूप से होने वाली ‘सोऽहं' ध्वनि के प्रति जागरूक रहना।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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