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________________ श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध कई लोग केवल श्वास को देखने की बातें ही करते हैं। अनेक लोग साथ में सोऽहं जोड़ने को भी कहते हैं । प्रथम है पैदल चलना, द्वितीय है आकाश में चलने जैसा। कुम्भकपूर्वक, प्रयत्नपूर्वक भी प्राणायाम हो सकता है, किन्तु यहाँ प्राणायाम का सहज रूप है। इसमें प्राणायाम होते-होते स्वयमेव धारणा ध्यान और समाधि की ओर गति होती है। महत्त्वपूर्ण है जो भी करे, दृढ़ श्रद्धापूर्वक करे, तब अधिक लाभ होता है । 258 प्रज्ञा से मन की एकाग्रता, आलस्य से दूरी एवं रोगमुक्ति मन की एकाग्रता हेतु जैसे किसी का मन लग ही न रहा हो तब प्रयत्नपूर्वक जितना गहरा लम्बा धीरे से श्वास ले सके, लेना । श्वास को भीतर लेते समय 'सो' कहना अथवा श्वास लेने पर स्वाभाविक रूप से होने वाली 'सो' ध्वनि के प्रति जागरूक रहना। फिर जितनी देर हो सके श्वास रोककर रखना, इससे मन एकाग्र हो जाएगा। जब श्वास भीतर रोककर रखते हैं, उस समय कुछ भी नहीं करमा । विचार आएंगे और अपने आप चले जाएंगें। मन में किसी भी प्रकार की गिनती नहीं करना । तत्पश्चात् धीरे-से गहराई से श्वास छोड़ना और छोड़ते हुए 'हं' कहना अथवा श्वास छोड़ने पर होने वाली स्वाभाविक ध्वनि 'हं' के प्रति जागरूक रहना । उसके बाद जितना समय हो सके, शून्य बनाए रखना । कुम्भक के अनुसार शून्य में भी कुछ नहीं करना । है 1 इस प्रकार 10 से 15 बार करने पर मन स्वयमेव शांत हो जाता स्वास्थ्य-लाभ - किसी भी प्रकार की बीमारी हो, सभी के लिए यह एक अच्छा उपाय है। मन में यह धारणा करनी कि श्वास के माध्यम से श्वास के साथ वह रोग, अस्वस्थता बाहर जा रही है । ऐसा सोचते हुए, मन में धारण करते हुए श्वास छोड़ते हुए ‘हं’ कहना या स्वाभाविक ध्वनि 'हं' के प्रति जागरूक रहना। तत्पश्चात् जितनी देर हो सके शून्य बनाए रखना। उसके बाद गहरा लम्बा श्वास लेना एवं श्वास लेते हुए मन में यह धारणा करनी कि समस्त विश्व की प्राणशक्ति श्वास के साथ मेरे भीतर आ रही है। स्वास्थ्य मेरे भीतर आ रहा है। इस धारणा को मन में बनाए रखते
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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