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कलाओं का कोई ज्ञान नहीं रहता है। परन्तु जागृत होते ही उसका ज्ञान भी जागृत हो जाता है। इसी तरह जब तक सूत्र का अर्थ के द्वारा बोध नहीं कराया जाता, तब तक उसके अर्थ को नहीं जाना जा सकता। परन्तु ज्यों ही उसके अर्थ का परिज्ञान करा दिया जाता है, त्यों ही वह अपने समस्त अर्थों को अभिव्यक्त करने लगता है।
3. श्लेष-जैसे श्लेष में अनेक तन्तु संघटित-मिले हुए होते है, उसी तरह सूत्र में अनेक अर्थ सन्निहित रहते हैं।
4. सूक्त-सूत्र सुन्दर एवं शोभनीय लगता हैं। इसलिए इसे सूक्त कहा है।
5. सूचक-सूई खो जाने पर जल्दी नहीं मिलती। परन्तु यदि वह सूत्र-धागे के साथ हो तो शीघ्र मिल जाती है। सूत्र धागे का सूचक है। इसी तरह सूत्र आगम के द्वारा उपदिष्ट अर्थ रूप वाणी की सूचना मिलती है। _____6. सूचिका-जैसे सूचिका-सूई से वस्त्रों की सिलाई करके उन्हें एक जगह जोड़ लिया जाता है; उसी तरह सूत्र भी अनेक अर्थों को संकलित करता है।
7. उत्पादक-जैसे अग्नि में सूर्यकान्त मणि और जल में चन्द्रकांत मणि अपनी प्रभा को प्रकट करती है, उसी प्रकार सूत्र भी अर्थ का प्रसव-उत्पादन (पैदा) करता है, इसलिए इसे उत्पादक कहते हैं।
8. अनुसरण-अनुसरण द्रव्य और भाव से दो प्रकार का कहा गया है। इसे स्पष्ट करने के लिए एक अन्ध वणिकपुत्र का दृष्टान्त दिया गया है। एक दिन वैश्य ने सोचा कि यह अन्धपुत्र निकम्मा बैठकर खाएगा तो इसका तिरस्कार होगा। अतः उस वैश्य ने अपने घर के आगे पीछे दो स्तम्भ खड़े कर दिए और उसमें एक रस्सी बांध दी और उसे कहा कि इस रस्सी के सहारे तुम इस कचरे को बाहर फेंक दिया करो। इस तरह पिता के वचनों का अनुसरण करने से उसका जीवन सम्मान पूर्वक बीतने लगा। यहां आचार्य पिता के तुल्य हैं, साधु अन्धे पुत्र के समान है, सूत्र रस्सी के तुल्य है और अष्ट कर्म कचरे के समान हैं। साधक सूत्र का अनुसरण करके अष्ट कर्ममल से रहित हो जाता है, अतः इसे अनुसरण कहा है।
1. सुत्तं तु सुत्तमेव उ, अहवा सुत्तं तु तं भवो लेसो।
अत्थस्स सूयणा वा, सुवुत्तापिइ वा भवे सुत्त।