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इसके अतिरिक्त सूत्र के और भी भेद बताए गए हैं। इस सम्बन्ध में नियुक्तिकार कहते हैं कि सूत्र तीन प्रकार का होता है-1. संज्ञा सूत्र, 2. कारक सूत्र और 3. प्रकरण सूत्र अथवा उत्सर्ग और अपवाद के भेद से भी सूत्र दो प्रकार का होता है। इसमें उत्सर्ग अल्प है या अपवाद, इसका उत्तर यह दिया गया है कि उभय सूत्र अपने-अपने स्थान पर श्रेयस्कर और बलवान हैं।
संज्ञा सूत्र-जो सूत्र सामयिक संज्ञा के द्वारा किसी बात का निर्देश करता है, उसे संज्ञा सूत्र कहते हैं। जैसे- 'जे छेए से सागरियं परियाहरे' आचारांग सूत्र के इस पाठ में मैथुन के लिए 'सागारियं' शब्द का प्रयोग किया है। इसी तरह दोष के लिए 'आमगन्ध' । संसार के लिए 'आर' और मोक्ष के लिए 'पार' शब्द का प्रयोग किया गया है, ये सब संज्ञा सूत्र हैं। यह प्रश्न पूछा जा सकता है कि संज्ञा सूत्र का प्रयोग करने से क्या लाभ है। इससे सबसे महत्त्वपूर्ण लाभ यह होता है कि पारस्परिक सभ्यता एवं शिष्टता का पालन हाता है। जैसे प्रवचन करते समय या कभी साधु साध्वी को सूत्र का अध्ययन कराते समय मैथुन आदि अशिष्ट शब्दों के स्थान में 'सागारियं' आदि संज्ञा शब्दों का प्रयोग करने से व्यावहारिक शिष्टता का भंग नहीं होता है और साधु-साध्वी एवं अन्य उपस्थित व्यक्तियों को लज्जित होने का प्रसंग भी उपस्थित नहीं होता है।
नेरुत्तियाइं तस्स उ सुयइ सिव्वइ तहेव सुवइत्ति। अणुसरतित्तिय भेया, तस्स उ नामा इमा हुति॥ पासुत्तसमं सुत्तं अत्थेणाबोहियं न तं जाणे। लेस सरिसेण तेणं अत्था संघाइया बहवे॥ सुइज्जइ सुत्तेणं सूई नट्ठावि तह सुएणत्यो। सिव्वइ अत्थ पयाणि व, जह सुत्तं कंचुगाईणिं॥ सूरमणी जलकतो व अत्थमेवं तु पसवई सुत्तं। वणिय सुयंध कयवरे तदणुसरंतो रयं एवं॥
-बृहत्कल्प नियुक्ति, गाथा 310-314 1. सन्ना य, कारगे, पकरणे य सुत्तं तु तं भवे तिविहं।
उस्सगे, अववाए, अप्पे सेए य बलबंते॥ -बृहत्कल्प नियुक्ति, 315 2. बृहत्कल्प नियुक्ति, 316