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________________ ___19 प्रथम श्रुतस्कन्ध में प्रतिपाद्य विषय . आचारांग सूत्र दो श्रुतस्कन्धों में विभक्त है। प्रथम श्रुतस्कन्ध के नव अध्ययन हैं। आगमों में 'ब्रह्मचर्य' के नाम से भी इसका उल्लेख किया गया है। स्थानांग सूत्र में लिखा है-'ब्रह्मचर्य के नव अध्ययन हैं-1. शस्त्र परिज्ञा, 2. लोक विजय, 3. शीतोष्णीय, 4. सम्यक्त्व, 5. लोकसार, 6. धूत, 7. विमोह, 8. उपधान और 9. महापरिज्ञा। ब्रह्मचर्य का अर्थ है-कुशल अनुष्ठान। अस्तु, जिस आगम में कुशल अनुष्ठान-संयम साधना का वर्णन है, उसे 'ब्रह्मचर्य' अध्ययन कहते हैं। प्रस्तुत आगम में साध्वाचार का ही विशेष रूप से वर्णन होने से इसका 'ब्रह्मचर्य अध्ययन' नाम दिया गया है। . प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन का नाम शस्त्र-परिज्ञा है। शस्त्र दो प्रकार के होते हैं- 1. द्रव्य शस्त्र और 2. भाव शस्त्र । लाठी, तलवार, पिस्तौल, बम्बादि द्रव्य-शस्त्र हैं और राग-द्वेष, काम-क्रोधादि भाव शस्त्र हैं। ‘परिज्ञा' का अर्थ है-शस्त्रों की भयंकरता एवं उनके द्वारा बढ़ने वाले संसार-परिभ्रमण के स्वरूप को जानकर उनका परित्याग करना। द्रव्य और भाव शस्त्रों का त्याग करना साधना का पहला कदम है। प्रस्तुत अध्ययन में इसी का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। -- द्वितीय अध्ययन का नाम लोक विजय है। लोक-संसार भी दो प्रकार का है1. द्रव्य और 2. भाव। द्रव्य लोक 4 गति रूप है और राग-द्वेष भाव लोक है। सग-द्वेष के कारण ही आत्मा द्रव्य लोक में परिभ्रमण करती है। अतः राग-द्वेष पर विजय प्राप्त करना ही लोक-संसार पर विजय प्राप्त करना है। प्रस्तुत अध्ययन में इसी का वर्णन किया गया है। - तृतीय अध्ययन का शीतोष्णीय नाम है। शीत का अर्थ है- अनुकूल परीषह और उष्ण का अभिप्राय है-प्रतिकूल परीषह। प्रस्तुत अध्ययन में यही बताया गया है कि साधना के पथ पर गतिशील साधु को अनुकूल एवं प्रतिकूल परीषहों के उत्पन्न होने पर समभाव रखना चाहिए। 1. णव बंभचेरा पं. तंजहा-सत्थपरिन्ना, लोग-विजओ जाव उवहाणसुयं महापिरण्णा। -स्थानांगसूत्र, 9/662
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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