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________________ 20 चतुर्थ सम्यक्त्व अध्ययन है। प्रस्तुत अध्ययन में समभाव की साधना का उपदेश दिया गया है। साधु को दृष्टिमोह का त्याग करके अचल भाव से साधना में संलग्न रहने का वर्णन किया गया है। ___पांचवां लोकसार अध्ययन है। रत्नत्रय-सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र ही लोक में सार पदार्थ हैं। अतः प्रस्तुत अध्ययन में कषाय त्याग एवं रत्नत्रय की साधना करने का उल्लेख किया गया है। षष्ठ धूत अध्ययन है। धूत का अर्थ है-परिजनों के संग-आसक्ति का त्याग करना। क्योंकि पारिवारिक स्नेह एवं मोह साधक को संसार से ऊपर नहीं उठने देता। अतः मुमुक्षु को उनके संग-साथ का त्याग करना चाहिए। प्रस्तुत अध्ययन में इसी का उल्लेख किया गया है। ___सातवाँ विमोह अध्ययन है। मोह एवं राग-भाव-उत्पन्न परीषहों पर विजय प्राप्त करना ही साधक की सच्ची विजय है। अतः मोह से उत्पन्न होने वाले कष्टों से घबराकर साधु को यन्त्र-मन्त्र का सहारा नहीं लेना चाहिए। प्रस्तुत अध्ययन में इसी का उपदेश दिया गया है। परन्तु वर्तमान में प्रस्तुत अध्ययन उपलब्ध नहीं है। अष्टम अध्ययन का नाम उपधान या विमोक्ष है। उपधान का अर्थ तप होता है। मुक्ति की प्राप्ति के लिए कर्म का नाश करना आवश्यक है। कर्म-निर्जरा के लिए तप अनिवार्य है। इसलिए इसमें यह बताया गया है कि साधु को वस्त्र-पात्र में कमी करके परीषहों को सहन करना चाहिए और पण्डित-मरण को प्राप्त करने के लिए संलेखना एवं अनशन व्रत को स्वीकार करके संयम साधना में संलग्न रहना चाहिए। नवम अध्ययन का नाम महापरिज्ञा है। इसमें भगवान महावीर की साधना का उल्लेख किया गया है। महा का अर्थ है-महान् और परिज्ञा का अर्थ है-संसार के स्वरूप को जानकर उसका परित्याग करना और परीषहों के उत्पन्न होने पर भी त्याग-मार्ग से च्युत नहीं होना। भगवान महावीर की साधना सर्वोकृष्ट साधना थी। उसका अनुशीलन-परिशीलन करके मन में परीषहों को सहने की भावना जागृत होती है। अस्तु, प्रस्तुत अध्ययन में भगवान महावीर की विशिष्ट साधना का उल्लेख करके साधु को अपने साधना-पथ पर दृढ़ता से चलने का उपदेश दिया गया है। प्रस्तुत आगम के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में प्रायः साध्वाचार का वर्णन किया गया है। वह पांच चूला रूप है और उसके 16 अध्ययन हैं।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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