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________________ 18 उसी तरह दर्शनाचार के आठ भेद हैं-1. जिनवाणी में संशय नहीं करना, 2. अन्य मत की प्रशंसा नहीं करना, 3. स्वकृत कर्म के फल के विषय में सन्देह नहीं करना, 4. अमूढ़ दृष्टि होना, 5. गुणिजनों के गुणों की प्रशंसा करना, 6. धर्म से गिरते हुए व्यक्ति को धर्म में स्थिर करना, 7. स्वधर्मी भाइयों में वात्सल्य रखना और (धर्म की) प्रभावना करना। ___आगम में चारित्राचार भी आठ प्रकार का बताया गया है-1. ईर्या समिति, 2. भाषा समिति, 3. एषणा समिति, 4. आदाणभंडनिक्षेपणा समिति, 5. उच्चार-प्रश्रवणखेल-जल्ल-सिंघाण परिष्ठापना समिति, 5. मन गुप्ति, 7. वचन गुप्ति और 8. काय गुप्ति। इस तरह पांच समिति और तीन गुप्ति इस आठ प्रवचन माता को चारित्राचार कहते हैं। तपाचार के बारह भेद बताए हैं-1. अनशन, 2. उनोदरी, 3. भिक्षाचरी, 4. रसत्याग, 5. काय-क्लेश और 6. प्रतिसंलीनता, ये बाह्य तप के 6 भेद हैं। और 1. प्रायश्चित्त, 2 विनय, 3 वैयावृत्य, 4 स्वाध्याय, 5 ध्यान और 6 कायोत्सर्ग, यह 6 प्रकार का आभ्यन्तर तप होता है। इस तरह तपाचार के 12 भेद होते हैं। वीर्याचार का परिपालन अनेक तरह से किया जा सकता है। इसे किसी निश्चित संख्या में नहीं बांधा जा सकता। वीर्य का अर्थ शक्ति है। अतः कर्म क्षय करना या संयम साधना में अपनी शक्ति का गोपन नहीं करना ही वीर्याचार है। इस तरह प्रस्तुत सूत्र में पांचों आचारों का सांगोपांग वर्णन किया गया है। 1. निस्संकिय, निक्खिय, निवित्तिगिच्छा, अमूढदिट्ठी य। ___उववूह, थिरीकरणे, वच्छल्ल, पभावणे अट्ठ ॥ 2. तिन्नेव य गुत्तीओ पंच समिइओ अट्ठ मिलियाओ। ___पवयण-माईउ इमा तासु ठिओ चरण-संपन्नो ॥ 3. अणसणमूणोयरिया, वित्ति संखेवणं रसच्चाओ। कायकिलेसो संलीणया य बन्झो तवो होइ॥ पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। झाणं उस्सग्गो विय, अभिंतरओ तवो होइ॥ 4. अणिगूहिय बलवीरिओ, परक्कमई जो जहुत्तमाउत्तो। झाणं उस्सग्गो वि य, अभितरओ तवो होइ॥
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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