SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वादशांगी का वर्गीकरण . समस्त जैनवाङ्मय को चार अनुयोगों में विभक्त किया जा सकता है1. धर्मकथानुयोग, 2. गणितानुयोग, 3. द्रव्यानुयोग और 4. चरण-करणानुयोग। ज्ञाताधर्मकथाङ्ग, अन्तकृत्दशांग आदि सूत्र धर्म-कथानुयोग में आते हैं। गणितानुयोग में भगवती सूत्र एवं सूर्यप्रज्ञप्ति आदि आगम माने जाते हैं। द्रव्यानुयोग संबंधी विवेचन स्थानांग, समवायाङ्गादि सूत्रों में उपलब्ध होता है और आचारांग सूत्र में चरण-करणानुयोग संबंधी वर्णन है। __ प्रस्तुत वर्गीकरण में प्रयुक्त ‘अनुयोग' शब्द का अर्थ है व्याख्या करना। वृत्तिकार ने भी इसका यही अर्थ किया है कि “सूत्र के पश्चात् उसके अर्थ का वर्णन करना या संक्षिप्त सूत्र का विस्तृत विवेचन करना अनुयोग कहलाता है।" इससे स्पष्ट होता है कि तीर्थंकरों का प्रवचन चार अनुयोगों में विभक्त होता है। या यों कहिए कि वे चार शैलियों में मोक्षमार्ग का उपदेश देते हैं या वस्तु तथा लोक का यथार्थ स्वरूप समझाते हैं। इस आचारांग में चरण-करणानुयोग की शैली का स्पष्ट दर्शन होता है, क्योंकि यह आगम आधार का निरूपण करता है। आचार पंचक . प्रस्तुत आगम में पांच आचारों का वर्णन मिलता है-1. ज्ञानाचार, 2. दर्शनाचार, 3. चारित्राचार, 4. तपाचार और 5. वीर्याचार। ज्ञानाचार का अर्थ है-ज्ञान की आराधना करना। आगम में इसके आठ भेद बताए गए हैं-1. नियत समय पर शास्त्र का स्वाध्याय करना, 2. विनय-भक्तिपूर्वक सूत्र का अनुशीलन करना, 3. बहुमानपूर्वक उसका अध्ययन करना, 4. उपधान-तप करते हुए शास्त्र का अध्ययन करना, 5. जिससे आगम का ज्ञान प्राप्त किया हो, उसके नाम को गुप्त न रखना, 6. सूत्र का शुद्ध उच्चारण करना, 7. उसके शुद्ध एवं यथार्थ अर्थ को ग्रहण करना और 8. सूत्र और अर्थ को बहुमान एवं आदर पूर्वक स्वीकार करना। 1. आचारस्यानुयोगः-अर्थकथनमाचारानुयोगः, सूत्रादनुपश्चादर्थस्यानुयोगोऽनुयोगः, सूत्राध्ययनात्पश्चादर्थकथनमिति भावना, अणोर्वा लघीयसः सूत्रस्य महताऽर्थेन योगोऽनुयोगः इति। । -आचारांग वृत्ति। 2. काले, विणए, बहुमाने, उवहाणे, तहा अणिण्हवणे। __वंजण, अत्थ, तदुभए, अट्ठविहो णाणमायारो॥
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy