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प्रथम अध्ययन, उद्देशक 4
अणगाराणामंतिके इह एकेषां ज्ञातं भवति - एष खलु ग्रन्थः, एष खलु मोहः, एष खलु मारः, एष खलु नरकः, इत्यर्थं गृद्धो लोकः यदिदं विरूपरूपैः शस्त्रैः अग्निकर्म समारम्भेण, अग्निशस्त्रं समारंभमाणे अन्यान् अनेकरूपान् प्राणान् विहिनस्ति ।
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पदार्थ - लज्जमाणा - स्वागमविहित अनुष्ठान करते हुए अथवा सावद्यानुष्ठान के कारण लज्जा का अनुभव करते हुए । पुढो - विभिन्न मतवालों को । पास - हे शिष्य ! तू देख । अणगारा मोत्ति - हम अनगार हैं, इस प्रकार । एगे - कई एक वादी । पवदमाणा - बोलते हुए । जमिणं - जो यह प्रत्यक्ष । विरूवरूवेहिं - नाना प्रकार के । सत्येंहिं-शस्त्रों से । अगणिकम्मसमारंभेण - अग्नि कर्म समारम्भ से । अर्गाण सत्यं समारम्भमाणे- अग्नि शस्त्र का समारम्भ प्रयोग करते हुए । अगरू - अनेक रूप वाले । अण्णे - अन्य । पाणे - प्राणियों की । विहिंसंति - हिंसा करते हैं। तत्थ - अग्निंकाय के आरम्भ - विषयक । खलु - निश्चय ही । भगवता - भगवान ने। परिण्णा - परिज्ञा । पवेइया - प्रतिपादन की है । इमस्स चेव - इसी । जीवियस्स - जीवन के लिए । परिवंदण - माणण - पूयणाए - प्रशंसा, मान-सम्मान और पूजा के लिए | जाई - मरण - मोयणाए - जन्म-मरण से छुटकारा पाने के लिए । दुक्खपडिघायहेउं - दुःखों का नाश करने के लिए। से- - वह । सयमेव - स्वयमेव । .. अगणि-सत्यं समारंभइ - अग्निकाय का शस्त्र से समारम्भ करता है । वा - अथवा । अण्णेहिं - दूसरों से । अगणि- सत्थं - अग्नि शस्त्र से। समारंभावेइ- समारम्भ कराता है । वा - तथा । अगणि- सत्यं - अग्नि- शस्त्रका | समारंभमाणे- समारम्भ करने वाले । अण्णे- - अन्य व्यक्ति का । समणुजाणइ - समर्थन करता है । तं - वह आरम्भ । से - उसको । अहियाए - अहितकर होता है । तं - वह आरम्भ । से- उसको । अबोहियाए - अबोध के लिए होता है । से तं- जिसको यह असदाचरण बता दिया गया है, वह शिष्य । संबुज्झमाणे- अग्नि के आरंभ को पाप रूप जानता हुआ । आयाणीयं- आचरणीय- सम्यग् दर्शनादि को प्राप्त कर । भगवओ - भगवान के समीप । वा— अथवा । अणगाराणां - अणगारों के समीप । सोच्चा-सुनकर । इहं - इस लोक में। एगेसिं-किसी-किसी व्यक्ति को । णायं ज्ञात हो जाता है। एस खलु - यह अग्निकाय का समारम्भ- निश्चय ही । मोहे - मोह का कारण है। एस - यह । खलु - निश्चय ही । गंथं - अष्ट कर्म की गांठ है। एस खलु - यह निश्चय ही । मारए - मृत्यु
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