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________________ 16 साधक पदार्थों की सही जानकारी कर सकता है और वह अपने चिन्तन का विकास करके आगे बढ़ सकता है। आगम में स्पष्ट शब्दों में कहा है कि साधक श्रुतज्ञान को सुनकर या पढ़कर ही कल्याणकारी एवं पापकारी अथवा हेय एवं उपादेय पथ को जान सकता है। उत्तराध्ययन सूत्र में एक स्थान पर पूछा गया है कि श्रुतज्ञान की आराधना से क्या फल मिलता है। भगवान फरमाते हैं कि श्रुतज्ञान की आराधना के द्वारा साधक ज्ञानावरणीय कर्म को क्षय करता है। वह आत्मज्ञान की ज्योति पर आए हुए आवरण को अनावृत करते-करते एक दिन निरावरण केवलज्ञान को प्राप्त कर लेता है। इस तरह श्रुतज्ञान साध्य की सिद्धि में विशेष सहायक होने के कारण उपकारी माना गया है। वर्तमान युग में साधक श्रुतज्ञान के आधार पर ही पदार्थों का यथार्थ ज्ञान करके आत्मा का विकास कर सकता है, मोक्षमार्ग पर कदम बढ़ा सकता है। अतः आत्मविकास के लिए श्रुतज्ञान महत्त्वपूर्ण है। - तीर्थंकर सर्वज्ञ होते ही तीर्थ-संघ की स्थापना करते हैं और भव्य प्राणियों को मोक्षमार्ग का उपदेश देते हैं। उन विस्तृत प्रवचनों को गणधर सूत्र रूप में ग्रथित करते हैं, अर्थात् उस अर्थरूप वाणी का संक्षिप्त संस्करण तैयार करते हैं। उसे द्वादशांगी कहते हैं। इस द्वादशांगी के निर्माता गणधर होते हैं, परन्तु इसका मूलाधार तीर्थंकरों की वाणी है। वे उन्हीं भावों को संक्षेप में अभिव्यक्त करते हैं। परन्तु वे उसमें अपनी ओर से कुछ नहीं मिलाते हैं। इसलिए द्वादशांगी सर्वज्ञ (तीर्थंकर) प्रणीत कहलाती है। द्वादशांगी में आचारांग का स्थान द्वादशांगी में आचारांग सूत्र का महत्वपूर्ण स्थान है। यह प्रथम अंग सूत्र है। जितने तीर्थंकर हुए हैं, उन सबने सर्वप्रथम आचारांग का उपदेश दिया है। वर्तमान 1. सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं। -दशवैकालिक सूत्र, 4/11 2. सुयस्स आराहणयाए णं भंते! जीवे किं जाणयइ? ... सुयस्स आराहणयाए णं अन्नाणं खवेइ, न य संकिलिस्सई। -उत्तराध्ययन सूत्र, 29/24 3. अनुयोगद्वार सूत्र। 4. अत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गंथति गणहरा निउणं । सासणस्स हियट्ठाए, तओ सुत्तं पवत्तई। -अनुयोगद्वार सूत्र और आवश्यक नियुक्ति।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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