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________________ प्रथम अध्ययन, उद्देशक 3 131 उपयोगी होने पर भी सजीव हैं और हस्तिनी के गर्भ में उत्पन्न होने वाला जीव तथा सभी पक्षियों के अंडे रूप में जन्म लेने वाला प्राणी कई दिनों तक तरल रहता है। फिर भी उसे सजीव मानते हैं। यदि उसकी तरल अवस्था में सजीवता नहीं मानोगे तो उससे बनने वाले अंगोपांग युक्त हाथी एवं पक्षियों में सजीवता प्रतीत नहीं होगी। इसलिए हस्तिनी के गर्भ में एवं अंडे में तरल अवस्था में स्थित अव्यक्त चेतना स्वीकार की गई है। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि पानी में चेतना का अस्तित्व है। द्रवित होने मात्र से उसे निर्जीव कहना सर्वथा अनुचित है। ____ इस तरह. प्रस्तुत सूत्र में यह स्पष्ट बताया गया है कि जैसे अपनी आत्मा के अस्तित्व को इनकार करना अपलाप कहा जाता है, उसी तरह अनुभव-सिद्ध अप्काय की सजीवता का निषेध करना भी अभ्याख्यान या अपलाप कहलाता है। जो अप्काय के अस्तित्व का अपलाप करते हैं, वे उसके आरम्भ-समारम्भ से नहीं बच सकते और उसके आरम्भ-समारम्भ से निवृत्त न होने के कारण फिर संसार में परिभ्रमण करते हैं और जो उसकी सजीवता को जानते हैं, वे उसका अपलाप भी नहीं करते और उसके आरम्भ-समारम्भ का त्याग करके संसार-सागर से पार हो जाते हैं। इसी बात को स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं____ मूलम्-लज्जमाणा पुढोपास अणगारा मो त्ति एगे पवयमाणा जमिणं विरूवरूवेहिं सत्येहिं उदय कम्मसमारंभेणं उदयसत्थं समारंभमाणे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ। तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेदिता इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए जाइ-मरण मोयणाए दुक्खपडिघाय हेउं से संयमेव उदयसत्थं समारंभति, अण्णेहिं वा उदय-सत्थं समारंभावेति, अण्णे उदय-सत्थं समारंभंते समणुजाणति। तं से अहियाए, तं से अबोहिए। से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाय सोच्चा भगवओ अणगाराणं अंतिए इहमेगेसिं णायं भवति-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु "1. सचेतना आपः, शस्त्रानुपहतत्त्वे सति द्रवत्वात्-हस्तिशरीरोपादान-भूत कललवत्।..... .......तथा सात्मकं तोयम् अनुपहत-द्रवत्वाद् अण्डकमध्यस्थितकललवत्, इत्यादि।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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