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________________ श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध पदार्थ - वीरा - वीर पुरुष - परिषह - उपसर्ग और कषायादि पर विजय प्राप्त करने वाले। महावीहिं-प्रधान मोक्ष मार्ग में । पणया - पुरुषार्थ कर चुके हैं। मूलार्थ - यह संयम मार्ग परिषह - उपसर्ग और कषायादि पर विजय पाने वाले धीर - महावीर पुरुषों द्वारा आसेवित है। 126 हिन्दी - विवेचन हम यह प्रथम ही बता चुके हैं कि जीवन में श्रद्धा की ज्योति का प्रदीप्त रहना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है। हम सदा देखते हैं कि श्रद्धा के बिना लौकिक या लोकोत्तर कोई भी कार्य सफल नहीं होता । साधना को सफल बनाने के लिए दृढ़ एवं. शुद्ध श्रद्धा होनी चाहिए। इसी बात को सूत्रकार ने पिछले सूत्र में बताया है कि साधक को अपने हृदय में संशय को प्रविष्ट नहीं होने देना चाहिए । प्रस्तुत सूत्र में श्रद्धा को दृढ़ बनाए रखने के लिए सूत्रकार ने यह स्पष्ट किया है कि यह साधना का मार्ग आज से नहीं, अपितु अनादि काल से चालू है, अनेक वीर पुरुषों ने इस मार्ग पर गतिशील होकर निर्वाण पद को प्राप्त किया है। 'वीर' शब्द का सीधा सा अर्थ शक्तिशाली है । परन्तु प्रस्तुत सूत्र में इसका संबन्ध शारीरिक एवं भौतिक बल एवं शक्ति नहीं, अपितु आध्यात्मिक शक्ति से है । वीर या बलवान वह है, जो क्रोध, मान, माया, लोभ आदि विकारों को परास्त करने की शक्ति रखता है, मनोज्ञ एवं अमनोज्ञ पदार्थों को देख कर मन में उत्पन्न होने वाले राग-द्वेष को उभरने नहीं देता है । क्योंकि दुनिया में राग-द्वेष एवं कषाय सब से शक्तिशाली माने गए हैं। बड़े-बड़े शक्तिशाली योद्धा एवं चक्रवर्ती सम्राट् तक उनके कृतदास बन जाते हैं, कषायों एवं राग-द्वेष के प्रवाह में प्रवहमान होने लगते हैं । अतः सच्चा विजेता और वास्तविक शक्तिशाली व्यक्ति वही माना जाता है, जो इन बलवान योद्धाओं को पछाड़ देता है । प्रस्तुत सूत्र में यही बताया गया है कि गजसुकुमार जैसे वीर पुरुषों ने राग-द्वेष, कषाय एवं परीषहों पर विजय प्राप्त करके सिद्धत्व को प्राप्त किया है। श्रेष्ठ एवं महान् पुरुषों द्वारा आचरित होने से यह प्रशस्त है, अतः मुमुक्षु को उत्साह के साथ साधना - पथ पर बढ़ते रहना चाहिए । पिछले सूत्रों एवं प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार ने अप्कायिक जीवों के संरक्षक अणगार
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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