SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम अध्ययन, उद्देशक 3 भी तरह शंका-कुशंका को प्रविष्ट न होने देना । अपनी आंतरिक भावना के विश्वास दूषित मत करना । 125 यह अनुभूत सत्य है कि संसारी जीवों की भावना सदा एक सी नहीं रहती । आत्मा के परिणामों की धारा में परिवर्तन होता रहता है । विचारों में कभी मन्दता आती है, तो कभी तीव्रता । साधक के मन में भी दीक्षा के समय जो उत्साह एवं उल्लास होता है, उसमें मन्दता एवं वेग ( तीव्रता ) दोनों के आने को अवकाश रहता है । उसकी श्रद्धा में दृढ़ता एवं निर्बलता दोनों के आने के निमित्त एवं साधन मिलते हैं। इसलिए मुमुक्षु को चाहिए कि श्रद्धा को कमजोर बनाने वाले साधनों से बचकर दृढ़ विश्वास के साथ संयम - मार्ग पर गति करे । श्रद्धा को क्षीण बनाने या विपरीत दिशा में मोड़ देनेवाला संशय है । जब मन में, विचारों में सन्देह होने लगता है, तो साधक का विश्वास डगमगा जाता है, उसकी साधना लड़खड़ाने लगती है । अतः साधक को इस बात के लिए सदा सावधान रहना चाहिए कि उसके मन में संदेह प्रविष्ट न हो सके। संशय को पनपने देना साधना के मार्ग से गिरना है । संशय भी दो प्रकार का होता है - 1 - सर्व संशय और देश संशय । पूरे सिद्धान्त पर संदेह होना या मन में यह सोचना कि यह सिद्धांत वीतराग द्वारा प्रणीत है और .. वीतराग की आज्ञा के अनुसार प्रवृत्ति करने से आत्मा समस्त कर्मों से मुक्त हो जायगी - इसे किसने देखा है ? अतः इस पर कैसे विश्वास किया जाए? यह सर्व शंका है और सिद्धान्त के किसी एक तत्त्व या पहलू पर सन्देह करना देश शंका है। जैसेमुक्ति है या नहीं? यह देश शंका का उदाहरण है । दोनों तरह की शंकाएं आत्मा की श्रद्धा को शिथिल कर देने वाली हैं, अतः साधक को अपने हृदय में शंका को उद्भूत नहीं होने देना चाहिए । साधनापथ नया नहीं है । अनन्त काल से अनेकों साधक इस पथ पर गतिशील होकर अपने साध्य को सिद्ध कर चुके हैं । इसी बात को बताते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम् - पणया वीरा महावीहिं ॥21॥ छाया - प्रणताः वीरा महावीथिम् ।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy