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प्रथम अध्ययन, उद्देशक 2 होना। हम देखते हैं कि कई व्यक्ति लोक-लज्जा के कारण कई बार दुष्कर्मों से बच जाते हैं। महात्मा गांधी ने अपनी 'आत्मकथा' पुस्तक में एक जगह लिखा है कि मैं वेश्या के मकान पर जाकर भी अपनी स्वाभाविक लज्जा के स्वभाव के कारण दुष्कर्म से बच गया। अस्तु, लज्जा भी जीवन का एक विशेष गुण है। इसके कारण मनुष्य दुर्भावना के प्रवाह में बहकर भी पापकार्य से बच जाता है। भारतीय संस्कृति के एक गायक ने ठीक ही कहा है कि लज्जा मानवोचित गुणों की जननी है
____ “लज्जागुणौघ जननी।" शास्त्रों में लौकिक और लोकोत्तर की अपेक्षा से लज्जा के दो भेद किए हैं। नववधु का श्वसुर आदि के सामने सकुंचाना तथा शूरवीर योद्धा का रणक्षेत्र से भागते हुए शर्माना लौकिक लज्जा के उदाहरण हैं। इसी तरह अनगार-मुनि भी पृथ्वीकाय के जीवों की हिंसा करते हुए तथा संयम-मार्ग की कठिनाइयों से डरकर साधनापथ से भागने में संकोच करता है, अर्थात् लज्जा के कारण वह संयम-मार्ग में प्रवृत्त रहता है, दृढ़ता के साथ साधना में संलग्न रहता है। अतः सत्तरह प्रकार का जो संयम बताया गया है, उसकी गणना लोकोत्तरं लज्जा में की गई है।
_ 'अनगार' शब्द का अर्थ है-मुनि, साधु । आगार घर को कहते हैं, अतः जिसके पास अपना घर नहीं है अथवा जिसका अपना कोई नियत निवास स्थान नहीं है, उसे अनगार कहते हैं। या यों भी कह सकते हैं कि साधु का कोई नियत स्थान या घर नहीं होता, इसलिए वह अनगार कहलाता है।
प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पृथ्वीकाय में असंख्यात जीव हैं और पृथ्वीकाय के जीवों की हिंसा में प्रवृत्तमान अन्य धर्म के साधुओं में साधुत्व का अभाव है। फिर भी कुछ लोग भौतिक सुख की अभिलाषा से मन-वचनकाय से सावद्य-प्रवृत्ति करते, कराते और करने वाले का समर्थन करते हैं। इसी बात को बताते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्-तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया, इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण, माणण, पूयणाए, जाइ-मरण-मोयणाए, दुक्खपड़िघाय-हेउं 1. लज्जा-दया-संजम-बंभचेर........इत्यादि।
दशवैकालिक, 9/1