SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 94 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध उपलक्ष में भी उनका स्मरण करना ठीक है, लेकिन अन्य आरंभ-समारंभ नहीं करने चाहिए। तप इत्यादि के अनुष्ठान द्वारा धर्मप्रभावना हो सकती है। जन्म के निमित्त से किसी भी प्रकार की क्रिया करना स्व या स्व के परिवार के लिए जैसे संतान प्राप्ति हेतु तथा संतान नहीं है, उस हेतु अनुष्ठान इत्यादि करना। .. मरण-मरण के निमित्त से कर्म का आस्रव करना, किसी को मारने की इच्छा या स्वयं मरने की इच्छा, मरणानुशंसा, मुझे मरण कब आए इस प्रकार दुःखी चित्त से आर्त और रौद्र ध्यान करना या किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसके वियोग में शोक करना। अपनी मृत्यु से डरना या किसी प्रियजन का वियोग न हो जाए, इस प्रकार चिन्तित रहना। संसार का कितना विचित्र स्वरूप है, जहाँ जन्म और मरण के बीच केवल तीन समय का अन्तर है, फिर भी हम मरण का शोक एवं जन्म पर हर्ष मानते हैं। किसी के मरण पर खेद या दुःख को प्रकट करना भी कर्मास्रव है। ___ उस अवसर पर उन्हें 'श्रद्धांजलि देना' उनमें रहे गुणों की अनुमोदना करना, वे जहाँ भी हों, उन्हें शांति मिले, उनका हमारे प्रति सदा ही स्नेह और सद्भाव बना रहे। कोई महापुरुष हो तो उनकी आशीष हम पर बनी रहे। 'कर्मों की गति विचित्र है, धर्म ध्यान करो, यही एक मात्र शांति का उपाय है।' दुःख की बात है, ऐसा नहीं कहना। मोक्ष-जिन-शासन को छोड़कर जितने भी अन्य मुक्ति के मार्ग हैं, उनमें संवर निर्जरा कम बंधन अधिक है। केवल तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट मार्ग ही शुद्ध संवर और निर्जरा का है। लेकिन अज्ञान के वश व्यक्ति मोक्ष के लिए भी ऐसी क्रियाएं करता है, जो उसे संसार परिभ्रमण करवाती हैं। दु:ख-प्रतिघात दुःख किसी को भी प्रिय नहीं है। व्यक्ति अपने दुःख को दूर करने के लिए दूसरों को दुःख देता है, जैसे गरमी लग रही है तो वायुकाय की हिंसा करता है। इस प्रकार दुःख का प्रतिघात करने पर क्षण भर के लिए दुःख दूर होता हुआ दिखाई भर देता है, परन्तु वास्तव में दुःख और बढ़ता ही है।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy