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अध्यात्मसार: 1
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प्रकाश से अंधकार। अंधकार से प्रकाश की ओर। अंधकार से अंधकार की ओर जाता है।
आसव-जो आसव इत्यादि होते हैं जैसे द्वाक्षासव उन्हें ग्रहण न करना हितकर है। क्योंकि उसमें अनेक प्रकार की समुच्छिम जीवो की उत्पत्ति बहुत अधिक होती है, अतः वे हिंसाकारी हैं। . सत्य परमोधर्म-अहिंसा परमोधर्म की जगह सत्य परमोधर्म लिखना, सत्य बहुत महत्त्वपूर्ण है, उसी में सारी ताकत है।
परिज्ञातकर्मा मुंनि कौन होता है? ___जो उन सभी क्रिया स्थानों को जानता है जिससे कर्मों का आस्रव होता है। व्यवहार रूप से जितने भी स्थान आगमों में बताएं हैं, जैसे जीवन के लिए, परिवन्दन के लिए इत्यादि को जो जानता है, वाचना, पृच्छना परियट्टना, अनुप्रेक्षा और धर्म कथा के माध्यम से उन स्थानों का अपने जीवन संबंध विश्लेषण एवं विवेचन के द्वारा तथा आत्मनिरीक्षण एवं परीक्षण के द्वारा तथा जो उन सभी के प्रति सावधान है, वह परिज्ञातकर्मा मुनि है।
जो यह देखता है कि मेरे जीवन में वह स्थान कहां-कहां काम करते हैं और वहां वहां उनसे निवृत्त होकर संयम में प्रवृत्त होता है।
4. पूजा-वीतरागी साधु केवल भाव पूजा करते हैं, द्रव्य पूजा नहीं करते। यहां पर पूजन को निम्न अर्थों में लिया गया है1-मिथ्यात्वी देवों की पूजा।
2-अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए पूजा करना। उसके लिए तरह-तरह के आरम्भ-समारम्भ करना, मनौती मनाना इत्यादि।
3-अयतना पूर्वक, रुचित वस्तु का प्रयोग करते हुए करना (अनुचिता)।
जन्म-जन्म के निमित्त कर्मों का आस्रव। अपने जन्म के निमित्त जैसे कोई अपना जन्मदिन मनाता है, आरंभ-समारंभ करता है। महा पुरुषों के जन्म जयंति के