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________________ 92 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध व्यावहारिक तत्त्व ज्ञान कभी-न-कभी व्यक्ति को जगाता है। ऐसा व्यक्ति कम-से-कम पापानुबन्धी पाप तो नहीं करेगा। उसके हाथ से कोई गलती, अशुभ क्रिया या पाप भी होगा तो भीतर का ज्ञान उसे चोट करेगा। भीतर से उसे ग्लानि और लज्जा का अनुभव होगा। जैसे खानदानी व्यक्ति के हाथ से गलत कार्य हो जाने पर भीतर से वह लज्जा अनुभव करता है और नीच व्यक्ति गलत कार्य करे तो भी उसे मान की आकांक्षा रहती है। उसे लज्जा का अनुभव तो नहीं होता, अपितु वह मान चाहता है। ___ उच्च खानदान-जिसका खान-पान शुद्ध है, सात्त्विक है, अच्छी आजीविका से आता है, जिसके परिवार में शुद्ध दान देने की वृत्ति है, अर्थात् सात्त्विक, निर्दोष, सुपात्र दान देने की वृत्ति है, उसका खानदान उच्च है। नीच खानदान-जिसका खान-पान अशुद्ध है, असात्त्विक है, आजीविका अच्छी नहीं है, कभी दान नहीं देता, अति परिग्रही है। हिंसा, झूठ इत्यादि से आजीविका आती है। उसका खानदान नीच है-खाना भी नीचा व दान भी नीचा। आचार्य-अतः आचार्य बनाते समय कुल एवं जाति को देखकर आचार्य पद दिया जाता है। माता-पिता का असर कहीं-न-कहीं किसी-न-किसी रूप में अवश्य आता है। यद्यपि कभी-कभी उच्च कुल में जन्म लेकर भी व्यक्ति गिर सकता है और चाण्डाल कुल में जन्म लेकर भी उच्च बन सकता है, फिर भी माता-पिता, जाति एवं कुल का महत्त्व अवश्य है। यह उच्च कुल का संबंध कुल के परंपरागत संस्कारों से है। खान-पान और दान की वृत्ति में है। जैसे तीर्थंकर का जन्म नीच कुल में नहीं होता, वैसे ही उच्च आत्माएं भी उच्च कुल में ही जन्म लेती हैं। जो बचपन से ही जिनेश्वर देव के मार्ग में जुड़े हैं, उनका जिन-साधना में जुड़ना आसान हो जाता है। 1. पुण्यानुबन्धी पुण्य-सवंर निर्जरा। 2. पापानुबन्धी पुण्य-अपेक्षा-भोग में लिप्त। 3. पुण्यानुबन्धी पाप-पश्चात्ताप की भावना से गिरते को बचाने वाला मिलेगा। 4. पापानुबन्धी पाप-उदय में आने पर व्यक्ति साधना से गिरता है। जैसे बौद्ध शासन में भी कहा है जैसे कोई व्यक्ति-प्रकाश से प्रकाश की ओर जाता है।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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