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अध्यात्मसार : 1
पापानुबंधी पाप-जो क्रिया दुर्भावना-वश की जाती है, साथ ही जो आगम के अनुसार नहीं है, पूर्ण कालिमा से भरी हुई वह क्रिया, जिससे कि अनेकों के सम्यक्त्व में भी दूषण लगता है, वह पापानुबंधी पाप है। वह इतना गहरा पाप है कि वह जब उदय में आता है, तब व्यक्ति साधना से स्खलित हो जाता है। इस प्रकार का कर्म जब उदय में आता है, तब वह दुःख तो लाता ही है, साथ ही दुःख के वश उसकी मति भ्रमित हो जाती है और उस समय वह जो भी करता है, वह अपने दुःख को और अधिक बढ़ाता है। ____ पाप-केवल अशुभ भावना के वंश जो क्रिया होती है, परन्तु जिससे किसी के सम्यक्तव और चारित्र में दूषण नहीं. लगता, ऐसी अशुभ भावना के वश हुई क्रिया से पाप-कर्म का बन्ध होता है और उसके उदय में आने पर व्यक्ति असाता का अनुभव करता है। इस पापोदय के वश व्यक्ति अपनी साधना से गिर भी सकता है
और नहीं भी गिर सकता। ___पापानुबंधी पुण्य-किसी को साता पहुंचाई, सहयोग दिया, शुभ भावना से दिया, लेकिन किसी को साता और सहयोग पहुँचाते हुए बाद में स्वार्थ, लोभ अपने मान और प्रतिष्ठा की भावना जब होती है, तब पापानुबंधी पुण्य का बन्धन होता है। किसी को साता भी पहुंचाई, पुण्य भी किया लेकिन बाद में स्वार्थ की भावना आ गई, शुभ भावनावश नहीं; मान, स्वार्थ व प्रतिष्ठा की भावना से किया, जब यह पुण्य उदय में आएगा, तब वह सुख के निमित्त, सुख के साधन प्रदान करेगा। लेकिन व्यक्ति की मति इस प्रकार होगी कि वह उन साधनों का उपयोग कर्म-बंधन हेतु दुःख एवं पाप की वृद्धि हेतु करेगा। ____ पाप एवं पश्चात्ताप-किसी को असाता पहुंचाई, दुःख पहुंचाया, लेकिन मन के भीतर, पश्चात्ताप की भावना आई, भीतर ग्लानि व लज्जा की भावना आई तो पाप किया, लेकिन रस पूर्वक नहीं किया, अतः जब वह कर्म उदय में आएगा, तब वह असाता तो लाएगा, पर वह असाता भी इतनी तीव्र नहीं होगी, साथ ही असाता दुःख के आते ही उससे बाहर निकलने का रास्ता मिलेगा, यहां कोई न कोई व्यक्ति ऐसा आएगा, जो उसे दुःख से बाहर निकालेगा या बाहर निकलने का रास्ता बताएगा।
व्यावहारिक तत्त्व ज्ञान का उपयोग भी यही काम आता है। पास में रहा हुआ