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________________ अध्यात्मसार : 1 स्वीकार नहीं करते, लेकिन निश्चय से आत्मबोध के पश्चात् (अपने निश्चय से आत्मबोध के पश्चात्) अपने आप गुण श्रेणी चढ़ते हुए व्रत आ जाते हैं। जैसे माता मरुदेवी, भरत चक्रवर्ती इत्यादि वाहर से प्रत्याख्यान धारण करना निश्चय से प्रत्याख्यान आने में साधना रूप एवं सहयोगी है और यही राजमार्ग है। - व्यवहार से साधुपद को हम छठे गुणस्थान में कहते हैं, लेकिन निश्चय से कई मुनिराज पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पाँचवे और छठे गुणस्थान में भी हो सकते हैं। ऐसे तो जीव कौन से गुण स्थान में है, यह निश्चय से केवलीगम्य और व्यवहार से जीव की वृत्तियाँ उसके विचार और भाव के अनुसार हम अनुमान लगा सकते हैं कि जीव किस गुणस्थान में है। चित्त को शान्तं करने के लिए-जब श्वासोच्छ्वास के साथ में हम नाभि पर ध्यान देते हैं, तब केवल उसके साथ रहने से चित्त अपने आप शान्त हो जाता है। यह प्रयोग रात को सोते समय कर सकते हैं। विचार त्वरा से शांत हो जाएंगे। सोऽहं-सोऽहं का ध्यान कुछ भी करो, करते रहो, उपयोग पूर्वक चलना, उठना, बैठना इत्यादि यतनापूर्वक करते हुए, अजपा जाप की तरह ‘सोऽहं भी अपने आप होगा। इस प्रकार ध्यान से नाभि केन्द्र का विकास होता है और दिशाबोध अपने आप होता है। जीव के परिणाम उच्च हों और यदि उत्कृष्ट परिणामों से वह तीव्र गति से साधना करे तो 6 महीने में ही यह बोध हो सकता है। यह बात साधना की अपेक्षा से है। वास्तव में ज़ब काल परिपक्व होता है, योग्य समय आता है और काल-लब्धि पकती है, तभी ज्ञान अपने आप होता है। अतः निष्ठा एवं यतनापूर्वक साधना करते रहना तथा धैर्य बनाए रखना, अधैर्य नहीं करना। ___ मूलम्-से आयावादी, कम्मावादी, किरियावादी॥6॥ • मूलार्थ-जिस साधक ने आत्मा के स्वरूप को समझ लिया है, वही आत्मवादी बन सकता है, अर्थात् आत्मा के स्वरूप का प्रतिपादन कर सकता है। जो आत्मा के स्वरूप का विवेचन कर सकता है, वही आत्मा लोक के स्वरूप को स्पष्टतः समझ एवं समझा सकता है। जो लोक के स्वरूप को अभिव्यक्त कर सकता है, वही कर्म के स्वरूप को बता सकता है। जो कर्म के स्वरूप की व्याख्या कर सकता है, वही वास्तव में क्रिया-आचरण के स्वरूप का वास्तविक वर्णन कर सकता है। मा .
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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