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________________ 84 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध ___आत्मा के स्वरूप को जाने बिना व्यक्ति लोक के, कर्म के और क्रिया के स्वरूप को नहीं जान सकता। इसलिए पहले आत्मा के स्वरूप को जानना आवश्यक है। जो आत्म-स्वरूप के बोध से युक्त है, वही आत्मस्वरूप के बोध का प्रतिपादन कर सकता है। अतः वही आत्मवादी है और जो आत्मवादी है, वही लोकवादी है। लोक के स्वरूप का प्रतिपादक ही कर्मवादी एवं क्रियावादी बन सकता है। इन चार बातों में भगवान की समस्त वाणी समाविष्ट हो गई है। प्रवचन कौन करें? इस भगवद्वाणी का प्रवचन करने का अधिकार किसे हैं? 1-निश्चय से तो 'आयावादी'-आत्मज्ञानी को ही भगवद्वाणी के प्रवचन का अधिकार है। आत्म-बोध के अभाव में उत्सूत्र की प्ररूपणा हो सकती है, जिससे स्वयं वक्ता एवं श्रोता उभय आत्मा की हानि हो सकती है। धर्म-कथा करने वाले के जो मूल गुण हैं, उसमें सर्वप्रथम है-आत्मबोध से युक्त होना। ___2-व्यवहार से-श्री दशवैकालिक सूत्र, श्री उत्तराध्ययन सूत्र, श्री आचारांग सूत्र, श्री ठाणांग सूत्र, श्री ज्ञाताधर्म कथांग सूत्र। इस द्रव्यश्रुत एवं भावश्रुत से युक्त मुनि। ___ मूल बात यह है कि उसे आचार का, विधि और निषेध का, हेय-ज्ञेय और उपादेय का परिपूर्ण बोध होना आवश्यक है। जो प्रतिदिन स्वाध्याय करने वाला हो तथा स्वयं के बाह्याचार एवं आभ्यंतर साधना में सुस्थिर हो, ऐसे सुसंयत व्यक्ति को ही धर्म कथा करने का अधिकार है। इन गुणों से रहित मुनिजन या अन्य आत्माएँ जब धर्म-कथा करते हैं, तब विपरीत प्ररूपणा होनी संभव है, जिससे ज्ञान का ह्रास होता है और आत्मा स्वयं अपने अज्ञान के अंधकार को घनीभूत रहती है, जिससे मुनिजनों में ज्ञान का विकास नहीं होता है। धर्म कथा-स्वाध्याय का एक उच्चतम पंचम अंग है। वाचना, पृच्छना परियट्टना अनुप्रेक्षा और फिर धर्म कथा। ___साधु धर्म कथा क्यों करता है? जिनवाणी की प्रभावना के लिए यह व्यवहार रूप से है। निश्चय नय से तो आत्मज्ञानी ही धर्म का प्रतिबोधक है। लेकिन इस काल में पहले व्यवहार है, फिर निश्चय।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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