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________________ प्रथम अध्ययन, उद्देशक 1 करने मात्र से कोई मुनि नहीं होता, अपितु ज्ञान से मुनि होता है।" जिस साधु के जीवन में ज्ञान का प्रकाश है, आलोक है वह मुनि है, भले ही वह जंगल में रहे, पर्वतों की गुफाओं में रहे या गांव एवं शहर में रहे। स्थान से उसके जीवन में कोई अन्तर नहीं पड़ता, यदि उसके जीवन में ज्ञान है। टीकाकार आचार्य शीलांक ने मुनि शब्द की यही परिभाषा की है। उन्होंने लिखा है कि “जो मननशील है या लोक की, जगत की त्रिकालवर्ती अवस्था को जानने वाला है, वह मुनि है।” इससे यह स्पष्ट हो गया कि जिस साधक को क्रिया की हेय-उपादेयता का सम्यक्तया परिबोध है और जो परिज्ञा-विवेक के साथ संयमसाधना में प्रवृत्त है, वह मुनि है और वही मुनि परिज्ञातकर्मा है। क्रिया-संबन्धी सम्पूर्ण प्रकरण का निष्कर्ष यह है कि साधक कर्म-बन्धन की हेतुभूत क्रिया के स्वरूप का सम्यक्तया बोध करके उससे निवृत्त होने का प्रयत्न करे। क्योंकि प्रत्येक साधक का मुख्य उद्देश्य क्रिया-मात्र से सर्वथा निवृत्त होना है, आत्मा के शुद्ध स्वरूप को प्रकट करना है या सीधी-सी भाषा में कहें तो निर्वाण पद को प्राप्त करना है। इसलिए साधक की साधना में तेजस्विता एवं गति पाने के लिए प्रस्तुत प्रकरण में संसार में परिभ्रमण कराने की कारणभूत क्रिया के स्वरूप को जान-समझ कर त्यागने की प्रेरणा दी गई है। _ 'इति ब्रवीमि' का अर्थ है-इस प्रकार मैं तुमसे कहता हूँ। इसका तात्पर्य स्पष्ट रूप से यह है कि आर्य सुधर्मा स्वामी अपने प्रिय शिष्य जम्बू स्वामी से कह रहे हैं कि-हे जम्बू! मैंने जो कुछ तुम्हें कहा है, वह जैसा भगवान महावीर के मुख से सुना है, वैसा ही कहा है, मैं अपनी तरफ से कुछ नहीं कह रहा हूँ। 'इति ब्रवीमि' के अन्तर में यही रहस्य अन्तर्निहित है। इस बात को हम पहले ही बता चुके हैं कि आगम के अर्थ रूप से उपदेष्टा तीर्थंकर ही होते हैं, गणधर केवल उनके उपदेश को सूत्र रूप में ग्रथित करते हैं। यही बात सूत्रकार ने 'त्ति बेमि' शब्द से अभिव्यक्त की है। . ॥शस्त्रपरिज्ञा प्रथम उद्देशक समाप्त। 1. उत्तराध्ययन, 25/31-32 2. “मनुते मन्यते वा जगतस्त्रिकालावस्थामिति मुनिः” -आचारांग टीका 1/1/1/13
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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