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________________ 78 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध मूलम्-जस्सेते लोगसि कम्मसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णाय कम्मे॥13॥ त्ति बेमि। छाया-यस्य एते लोके कर्मसमारम्भाः परिज्ञाता भवंति सः खलु मुनिः परिज्ञात-कर्मा। इति ब्रवीमि। पदार्थ-जस्स-जिस मुमुक्षु के। एते-ये (पूर्वोक्त)। कम्मसभारम्भा-कर्म सम्मारम्भ-क्रिया-विशेष । परिण्णाया-परिज्ञात। भवंति-होते हैं। से-वह। मुणीमुनि। परिण्णायकम्मे-परिज्ञातकर्मा होता है। त्ति बेमि-ऐसा मैं कहता हूँ। __ मूलार्थ-जिस मुमुक्षु को पूर्वोक्त कर्म-समारंभ परिज्ञात है, वह मुनि परिज्ञातकर्मा-कर्म और क्रिया के स्वरूप को भली-भांति जानने और जान-समझ कर त्याग करने वाला तथा विवेक-युक्त संयम-साधना में प्रवृत्त होता है। हिन्दी-विवेचन ज्ञानावरणीय आदि अष्टविध कर्मों के बन्ध की कारण क्रिया विशेष हैं, उन्हीं को कर्म-समारंभ कहते हैं। उनका भली-भांति ज्ञाता, अर्थात् कर्मबन्ध की कारणभूत क्रियाओं को सम्यक्तया जानने तथा तदनुसार उनका परित्याग करने वाला, जो मुनि है, वह परिज्ञात-कर्मा कहलाता है। परिज्ञात-कर्मा का तात्पर्य है-वह मुनि जो ज्ञ-परिज्ञा से उसके वास्तविक स्वरूप को जानता, समझता है और प्रत्याख्यान-परिज्ञा के द्वारा उसका परित्याग करता है। इसका स्पष्ट अर्थ यह हुआ कि वह ज्ञानपूर्वक आचरण में प्रवृत्त होता है। उसका ज्ञान आचरण से समन्वित है और आचरण ज्ञान के प्रकाश से ज्योतिर्मय है। उसके जीवन में ज्ञान और क्रिया का या यों कहिए कि विचार और आचार का विरोध नहीं, समन्वय है और इन दोनों का समन्वय ही मोक्ष-मार्ग है, आत्मा को क्रिया से सर्वथा निवृत्त करने वाला है। किसी भी गन्तव्य स्थान पर पहुंचने के लिए ज्ञान और क्रिया दोनों के समन्वित प्रयत्न की आवश्यकता होती है। जिस स्थान पर पहुंचना है, पहले उस स्थान का एवं उसके रास्ते का ज्ञान होना जरूरी है और फिर तदनुरूप क्रिया की आवश्यकता है। ज्ञान और क्रिया के सुमेल से ही प्रत्येक व्यक्ति अपने लक्ष्य पर पहुंच सकता है-चाहे वह गन्तव्य स्थान लौकिक हो या लोकोत्तर। मुनि शब्द की व्याख्या करते हुए आगम में कहा गया है कि “वन में निवास
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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