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प्रथम अध्ययन, उद्देशक 1
का विश्वास है कि मृतपति के साथ जलने से अगले जन्म में उसे वही पति मिलेगा। इस तरह जन्म को सुखमय बनाने के लिए मनुष्य आत्महत्या-जैसा जघन्य कार्य एवं अन्य हिंसक कार्य करके कर्मों का संग्रह करता है। ____6. मरण-मरण अर्थात् मृत्यु के लिए मनुष्य अनेक दुष्कर्म करता है। वर्तमान के दुःखमय जीवन से घबराकर कष्ट से बचने के लिए मनुष्य विष खाकर, गले में रएसी का फंदा डालकर, मकान की छत आदि से गिरकर या अन्य किसी साधन से आत्महत्या कस्ता है। इसके अतिरिक्त मृत्यु से बचने के लिए मांस-मदिरा युक्त औषधियों का सेवन करता है, देवी-देवताओं के सामने पशुओं का बलिदान करता है। इस तरह मृत्यु के निमित भी मनुष्य अनेक पापजन्य कार्य करता है।
7. मोक्ष-मोक्ष-मुक्ति को कहा गया है। मुक्ति पाने के लिए भी बाल-अज्ञानी जीव हिंसा एवं पापों का आसेवन करते हैं। कई लोग मुक्ति पाने के लिए पञ्चाग्नि तपते हैं, वृक्ष से पैर बांध कर उल्टे लटक जाते हैं और नीचे आग जला देते हैं, सर्दी की ऋतु में घंटों पानी में खड़े रहते हैं, केवल कन्द-मूल या शैवाल का भोजन करते हैं। इस तरह मुक्ति पाने के हेतु अनेक पाप कार्य करके अज्ञानी जीव कर्मों का संग्रह करके संसार में ही परिभ्रमण करते हैं।
‘जाइमरण-मोयणाए' का यदि 'जातिश्च, मरणं च, मोचनं च, जातिमरणमोचनं' . यह विग्रह न मानकर 'जातिश्च मरणं च जातिमरणे तयो मोचनाय' ऐसा विग्रह किया जाए तो उसका अर्थ होगा कि जन्म-मरण से मुक्त होने के लिए, हम देखते हैं कि कई व्यक्ति जन्म-मरण से छुटकारा पाने के लिए अनेक तरह की सावध क्रियाएं करते हैं, बाल तप करते हैं, पञ्चाग्नि तपते हैं। इस प्रकार मुक्ति के लिए सावध अनुष्ठान करके कई अज्ञ प्राणी कर्मों का संग्रह करते हैं। .. ... 8. दुःख-प्रतिघात-दुःख-प्रतिघात का अर्थ है-दुःखों से सर्वथा छुटकारा पाना। प्रत्येक व्यक्ति दुःखों से मुक्त-उन्मुक्त होना चाहता है। पर उसे सन्मार्ग का ज्ञान नहीं होने से अनेक अज्ञ प्राणी दुष्प्रवृत्तियों का सेवन करते हैं। संसार में अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, शोषक-शोषित आदि वर्गों एवं जातियों का चल रहा संघर्ष दुःख से छुटकारा पाने का ही प्रतीक है। दुःखों से मुक्त होने के लिए मनुष्य उचित-अनुचित साधनों से दिन-रात धन बटोरने एवं परिवार बढ़ाने में लगा रहता है। धन और जन की अभिवृद्धि