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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
पर तथा लोगों की ज़बान पर अपना नाम देखना या सुनना। कुछ लोग प्रशंसा पाने के लिए गरमी की ऋतु में भी अग्नि या पंचाग्नि तपते हैं। इस तरह प्रशंसा पाने के लिए मनुष्य पृथ्वी, पानी, वनस्पति, अग्नि पशु-पक्षी आदि अनेक जीवों की हिंसा करता है और उससे पाप कर्म का संग्रह करता है। ___ 3. मान-मान का अर्थ है-आदर-सत्कार। मनुष्य मान-सम्मान या आदर-सत्कार पाने के लिए अनेक तरह के दुष्कृत्य करता है। अपना सम्मान बनाए रखने के लिए मनुष्य छल-कपट करता है, अपने से कमजोर व्यक्तियों को आतंकित करता है, डराता है धमकाता है। इस तरह मान-सम्मान की चाह के वशीभूत हुआ मनुष्य मनुष्यों का शोषण करता है, निरपराध प्राणियों पर प्रहार करता है और यदि शक्तिशाली हुआ तो युद्ध का दावानल सुलगा देता है। किसी ने जरा-सा अपमान किया वा आदेश नहीं माना कि उसका दिमाग गरम हो जाता है और वह उसका बदला खून की नदी बहाकर ही लेता है। चक्रवर्ती सम्राट भरत ने केवल अपना आदेश न मानने के कारण अपने छोटे भाई बाहुबली पर आक्रमण किया था। आज भी मनुष्य अपना मान-सम्मान बढ़ाने के लिए दूसरों को कुचलते हुए ज़रा भी नहीं हिचकिचाता। इसके अतिरिक्त वह और भी दुष्कर्म करता है-अधिकारियों को रिश्वत देता है; उन्हें सामिष भोजन खिलाता है; मदिरा पिलाता है, वेश्यालय की सैर कराता है। इस प्रकार मान-सम्मान के लिए मनुष्य अनेक दुष्कृत्यों में प्रवृत्त होकर पाप-कर्म का उपार्जन करता है और परिणाम स्वरूप चारगति में परिभ्रमण करता है। ____4. पूजन-अन्न-वस्त्र, जल, पुष्प-फल आदि से या पशु-पक्षी का बलिदान करके देवी-देवताओं को प्रसन्न करना पूजन कहलाता है। अज्ञानी लोक पूजा के नाम पर अनेक मूक प्राणियों की तथा पुष्प, फल, जल आदि एकेंद्रिय जीवों की व्यर्थ हिंसा करके कर्मों का संग्रह करते हैं।
5. जाति-जन्म-जाति का अर्थ है-जन्म। पुत्र आदि के जन्म पर तथा जन्म-दिन की याद में मनुष्य अनेक तरह के आरंभ-समारंभ के कार्य करता है। इसके अतिरिक्त परलोक में अच्छा जन्म मिलेगा, इस लोभ से कई अज्ञ व्यक्ति जल-प्रवाह में प्रवाहित होते हैं, गंगा की तेज धारा में जल-समाधि लगाते हैं, स्त्री को मृतपति के साथ जला देते हैं। पति के साथ पत्नी के जलने की परम्परा को सतीप्रथा कहते हैं। कुछ लोगों