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प्रथम अध्ययन, उद्देशक 1 4-सचित्त .योनि-जो उत्पत्ति स्थान जीव-प्रदेशों से अधिष्ठित है, संयुक्त है, उसे सचित्त योनि कहते हैं। ____5-अचित्त-योनि-जो उत्पत्ति स्थान जीव प्रदेशों से युक्त नहीं है, उसे अचित्त योनि कहा है। - 6-सचित्ताचित्त योनि-जिस उत्पत्ति स्थान का कुछ भाग आत्म-प्रदेशों से युक्त हो और कुछ भाग आत्म-प्रदे ।। से रहित हो, उसे सचित्ताचित्त योनि कहते हैं।
7-संवृत्तयोनि-जो उत्पत्ति स्थान प्रच्छन्न हो, अप्रकट हो, आंखों द्वारा दिखाई नहीं देता हो, उसे संवृत्त योनि कहते हैं। ____8-विवृत्त योनि-जो उत्पत्ति स्थान अनाव हो, खुला हो उसे विवृत्त योनि कहते हैं। . 9-संवृत्तविवृत्तयोनि-जिस उत्पत्ति स्थान का कुछ भाग प्रच्छन्न हो, आवृत हो
और कुछ भाग अनावृत हो, उसे संवृत-विवृत योनि कहते हैं। . गर्भज मनुष्य, तिर्यञ्च और देवों की शीतष्ण योनि होती है। तेजस्कायिक-अग्नि के जीवों की योनि उष्ण है, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की तथा गर्भज पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च सम्मूर्छिम मनुष्य और नरक के जीवों की शीत, उष्ण और शीतोष्ण तीनों तरह की योनियां होती हैं।
देव और नारक जीवों की योनि अचित्त होती है। गर्भज तिर्यञ्च और मनुष्यों की योनि सचित्ताचित्त होती है। पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, अगर्भज पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च और सम्मूर्छिम मनुष्य, इन सब जीवों की सचित्त, अचित्त और सचित्ताचित्त तीनों तरह की योनियां होती हैं।
नारक, देव और एकेन्द्रिय जीवों की योनि संवृत होती है। गर्भज तिर्यञ्च और मनुष्यों की योनि संवृत-विवृत होती है। तीन विकलेन्द्रिय, अगर्भज पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च
और सम्मूर्छिम मनुष्य आदि जीवों की योनि विवृत होती है। ___इस तरह योनियों के नव भेद होते हैं। इनका उल्लेख प्रज्ञापना सूत्र में मिलता है। इसके अतिरिक्त योनि के और भी अनेक भेद मिलते हैं। उनकी संख्या 84 लाख बताई गई है। वह इस प्रकार है