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________________ प्रथम अध्ययन, उद्देशक 1 उपर्युक्त त्रिविध साधनों से जो जीव-आत्मा अपने स्वरूप को समझ लेता है, वह आत्मवादी कहा गया है। जो आत्मवादी है, वही लोकवादी है और जो लोकवादी होता है, वही कर्मवादी कहा जाता है और जो कर्मवादी है, वही क्रियावादी कहलाता है। आगे के सूत्र में इन्हीं भावों का विवेचन करते हुए सूत्रकार ने कहा है मूलम-से आयावादी, लोयावादी, कम्मावादी, किरियावादी॥6॥ छाया-स आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी, क्रियावादी। पदार्थ-से-वह, अर्थात् आत्मा के उक्त स्वरूप को जानने वाला। आयावादी-आत्मवादी, आस्तिक है, वही। लोयावादी-लोकवादी है, वही। कम्मावादी-कर्मवादी है, वही। किरियावादी-क्रियावादी है। मूलार्थ-जिस साधक ने आत्मा के स्वरूप को समझ लिया है, वही आत्मवादी बन सकता है, अर्थात् आत्मा के स्वरूप का प्रतिपादन कर सकता है। जो आत्मा के स्वरूप का विवेचन कर सकता है, वही आत्मा लोक के स्वरूप को स्पष्टतः समझ एवं समझा सकता है। जो लोक के स्वरूप को अभिव्यक्त कर सकता है, वही कर्म के स्वरूप को बता सकता है। जो कर्म के स्वरूप की व्याख्या कर सकता है, वही वास्तव में क्रिया-आचरण के स्वरूप का वास्तविक वर्णन कर सकता है। हिन्दी-विवेचन ___ पूर्व सूत्र में बताए गये साधनों से जब किन्हीं जीवों को अपने स्वरूप का बोध हो जाता है तो उन्हें आत्मस्वरूप का ज्ञान भली-भांति हो जाता है। तब वह आत्मा, आत्मा के यथार्थ स्वरूप को प्रकट करने की योग्यता प्राप्त कर लेता है। आत्मतत्त्व का यथार्थ रूप से विवेचन करने वाले व्यक्ति को ही आगमिक भाषा में आत्मवादी कहा है। आचार्य शीलांक ने लिखा है ___ “आत्मवादीति आत्मानं वदितुं शीलमस्येति" -- अर्थात्-आत्मतत्त्व के स्वरूप को प्रतिपादन करने वाला व्यक्ति आत्मवादी कहलाता जो व्यक्ति आत्मस्वरूप का ज्ञाता है, वही लोक के यथार्थ स्वरूप को जान सकता है, और इस क्रम से जो लोक-स्वरूप को भलीभांति जानता है, वही कर्म और
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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