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________________ प्रथम अध्ययन, उद्देशक 1 संसार में। पेच्चा-परलोक, जन्मान्तर में। के भविस्सामि-क्या बनूंगा? . “ मूलार्थ-इसी प्रकार जैसा कि पूर्व सूत्र में कहा गया है कि किन्हीं जीवों को इस बात का परिबोध-ज्ञान नहीं होता कि मेरी आत्मा औपपातिक अर्थात् जन्मान्तर में एक योनि को छोड़कर दूसरी योनि में उत्पन्न होने वाली है या नहीं? मैं इस जन्म के पूर्व कौन था? यहां से मरकर भविष्य में क्या बनूंगा, अर्थात् किस गति में जन्म ग्रहण करूंगा? . हिन्दी-विवेचन आत्मा के स्वतन्त्र अस्तित्व को मानने वाले दर्शनों का यह विश्वास है कि संसारी आत्मा अनादि काल से कर्म से आबद्ध होने के कारण अनन्त-अनन्त काल से जन्म-मरण के प्रवाह में प्रवंहमान हैं। कर्म के आवरण के कारण ही यह अपने अन्दर स्थित अनन्त शक्तियों के भण्डार को देख नहीं पाती है। कई एक आत्माओं पर ज्ञानावरणीय कर्म का आवरण कभी-कभी इतना गहरा छा जाता है कि उन्हें अपने अस्तित्व तक का भी परिबोध नहीं होता। उस समय वह यह भी नहीं जानता कि मैं उत्पत्तिशील एक गति से दूसरी गति में जन्म लेने वाला, विभिन्न योनियों में विभिन्न शरीरों को धारण करने वाला हूँ या नहीं? इस जन्म के पहले भी मेरा अस्तित्व था या नहीं? यदि था तो मैं किस योनि या गति में था? मैं यहां से अपने आयुष्य कर्म को भोगकर भविष्य में कहां जाऊंगा? किस योनि में उत्पन्न होऊंगा? ज्ञानावरणीय कर्म के प्रगाढ़ आवरण से आवृत्त ये आत्माएं उक्त बातों को नहीं जान पातीं, उक्त जीवों की इसी अबोध दशा को सूत्रकार ने प्रस्तुत सूत्र में अभिव्यक्त किया है। - संसार में दिखाई देने वाले प्राणियों में आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व है या नहीं अथवा यों कहिए कि आत्मा के अस्तित्व और नास्तित्व का प्रश्न दार्शनिकों में पुरातन काल से चला आ रहा है। जबकि आत्मा को चेतन तो सभी मानते हैं यहां तक कि चार्वाक जैसे नास्तिक भी उसको चेतन मानते हैं। परन्तु दार्शनिकों में मतभेद इस बात का है कि आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व है या नहीं? कुछ विचारक पांच भूतों के मिलन से चेतना का प्रादुर्भाव मानते हैं और उनके नाश के साथ चेतना या आत्मा का नाश मानते हैं। उनके विचार में आत्मा का अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। परन्तु
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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