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________________ प्रथम अध्ययन, उद्देशक 1 इस तरह ‘संज्ञा' शब्द से अनुभूति और ज्ञान दोनों का निरूपण किया गया है। अनुभूति रूप संज्ञा या चेतना तो संसार के सभी जीवों में रहती है। अतः यहां उक्त संज्ञा का निषेध नहीं किया गया है। ज्ञान रूपी संज्ञा में भी संसार के समस्त छद्मस्थ जीवों में सम्यक् या असम्यक् किसी न किसी रूप में मति एवं श्रुतज्ञान या अज्ञान रहता ही है। अतः ‘णो सण्णा भवइ' वाक्य से प्रस्तुत सूत्र में जो ज्ञान का निषेध किया है, वह साधारण रूप से होने वाले ज्ञान का नहीं, परन्तु विशिष्ट रूप से पाए जाने वाले ज्ञान का निषेध किया है, जिससे आत्मा यह जान-समझ सके कि मैं किस दिशा-विदिशा से आया हूँ? ऐसा विशिष्ट ज्ञान संसार के सभी जीवों को नहीं होता। इसलिए ‘णो' पद से यह अभिव्यक्त किया गया है कि संसार के कुछ एक जीवों को विशिष्ट ज्ञान नहीं होता। उस विशिष्ट ज्ञान का क्या स्वरूप है? इसका समाधान एवं स्पष्ट विवेचन सूत्रकार के शब्दों में आगे के सूत्र में पढ़ें___ मूलम्-तंजहा-पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थि-माओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अहोदिसाओ वा आगओ अहमंसि, अण्णयरीओ वा दिसाओ, अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि॥3॥ छाया-पूर्वस्या वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, दक्षिणस्या वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, पश्चिमाया वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, उत्तरस्या वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, ऊर्धाया वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, अधोदिशाया वा आगतोऽहमस्मि, अन्यतरस्या वा दिशाया, अनुदिशाया वा आगतोऽहमस्मि। पदार्थ-तंजहा-जैसे। पुरत्थिमाओ वा दिसाओ-पूर्व दिशा से। आगओ अहमंसि-मैं आया हूँ। दाहिणाओ वा दिसाओ-अथवा दक्षिण दिशा से। पच्चस्थिमाओ वा दिसाओ-या पश्चिम दिशा से। उत्तराओ वा दिसाओ-या उत्तर दिशा से। उड्ढाओ वा दिसाओ-या ऊर्ध्व दिशा से। अहो दिसाओ वा-या अधो दिशा से। अण्णयरीओ वा दिसाओ-या किसी भी एक दिशा से। 1. 'आगओ अहमंसि' का सब जगह 'मैं आया हूँ' यह अर्थ समझना चाहिए।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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