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________________ प्रथम अध्ययन, उद्देशक 1 नहीं है और नहीं होगा। वह तो पहले से था, अब है और अनागत में भी रहेगा। वह ध्रुव है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है और नित्य है। इस कथन का यह तात्पर्य नहीं है कि अनन्त काल से चले आ रहे, अनन्त तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट आगमों की भाषा एक ही थी, जो शब्द-भाषा वर्तमान में उपलब्ध आगमों में मिलते हैं, वे ही शब्द उन आगमों के थे। इसका अर्थ इतना ही है कि भाषा में अन्तर होते हुए भी भावों में समानता थी। वास्तविक दृष्टि से विचारा जाए तो सत्य एक ही है, सिद्धान्त एक ही है। विभिन्न देश, काल और पुरुष की अपेक्षा से उस सत्य का उद्भव अनेक तरह से होता रहा है, परन्तु भाषा के उन विभिन्न रूपों में एक ही त्रैकालिक सत्य अनुस्यूत रहा है। उस त्रैकालिक सत्य की ओर देखा जाए, और देश-काल एवं पुरुष की अपेक्षा से बने आविर्भाव की उपेक्षा की जाए, तो यही कहना होगा कि जो भी तीर्थंकर, अरिहन्त राग-द्वेष पर विजय प्राप्त करके-सर्वज्ञ-सर्वदर्शी बनकर उपदेश देते हैं, वे आचार को त्रैकालिक सत्यसामायिक-समभाव, विश्ववात्सल्य, विश्वमैत्री का और विचार के त्रैकालिक सत्यस्याद्वाद-अनेकान्तवाद या विभज्यवाद का ही उपदेश देते हैं। आचार से सामायिक की साधना एवं विचार से अनेकान्त-स्याद्वाद की भाषा का तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट आदेश अनादि-अनन्त है, कर्तृत्व से रहित है। ऐसा एक भी क्षण नहीं मिलेगा कि विश्व में इस सत्य का स्रोत नहीं बह रहा हो। अतः इस अपेक्षा से द्वादशांग, गणिपिटक-आगम अनादि-अनन्त हैं। · बृहत्कल्प भाष्य में एक स्थल पर कहा गया है कि भगवान ऋषभदेव आदि तीर्थंकरों और भगवान महावीर की शरीर-अवगाहना एवं आयुष्य में अत्यधिक वैलक्षण्य होने पर भी, उन सबकी धृति, संघयण और संठाण तथा आन्तरिक शक्ति-केवल ज्ञान की दृष्टि से विचार किया जाए तो उन सबकी उक्त योग्यता में कोई अन्तर न होने के कारण उनके उपदेश में, सिद्धान्त-प्ररूपण में कोई भेद नहीं हो सकता। आगमों में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि सभी तीर्थंकर वज्रऋषभनाराच संघयण और समचतुरस्त्र संस्थान वाले होते हैं और संसार में सभी तत्त्वों को, पदार्थों को तथा 1. नन्दी सूत्र 58, समवायांग सूत्र 12, द्वादशांगी परिचय। 2. बृहत्कल्प भाष्य
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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