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________________ पारिभाषिक शब्दकोश 925 रहनेमि-भगवान अरिष्टनेमि का लघुभ्राता, जिसने राजमती को अपने साथ भोग भोगने का आमन्त्रण दिया था और उससे प्रतिबोध पाकर साधनापथ पर पुनः दृढ़ हुआ। राजमती-मथुरा के महाराज उग्रसेन की पुत्री, जिसका सम्बन्ध भगवान अरिष्टनेमि के साथ हुआ था। पशुओं की रक्षा के लिए जब अरिष्टनेमि उसे त्यागकर साधना करने चले गए, उस समय वह भी दीक्षित हो गई। लोक-संसार, राग-द्वेष एवं काषायिक भाव। लोकवादी-लोक के स्वरूप को अभिव्यक्त करने वाला। लोक-संज्ञा-लोक में प्रचलित रूढ़ियों एवं परम्पराओं पर विश्वास रखना। लब्धि-शक्ति, आत्मा की एक ताकत। लब्धि-त्रस-स्थावर नाम कर्म के उदय से जो एकेन्द्रिय जाति में उत्पन्न हुए हैं, परन्तु फिर भी उनमें चारों दिशाओं में गति करने की शक्ति है, उन्हे स्थावर होते हुए भी लब्धि-त्रस कहते हैं, जैसे-वायु और अग्नि। .. लाघवता-हलकापन या कमी। लाढ़-देश-यह बङ्गाल में विहार की सीमा के निकट स्थित है, यहां के लोग अनार्य थे। यहां की भूमि वज्र कठोर होने से इसे वज्र भूमि भी कहते हैं। लेश्या-परिणामों की शुभाशुभ धारा। ... लोकभय-परिवार, समाज एवं राष्ट्र का भय। .. वज्रऋषभनाराचसंघयण-इसमें शरीर की हड्डियां वज्र की तरह मजबूत होती हैं, उसमें वज्र सी हड्डी का कील और उसी का मर्कट बन्ध लगा रहता है। इस कारण वज्रऋषभनाराचसंघयण वाले व्यक्ति पर अस्त्र-शस्त्र का जल्दी आघात नहीं लगता। वज्रवत-वज्र की तरह कठोर। वनस्पति-काय-जिन जीवों ने हरी-सब्जी, फल-फूल, पत्ते, अनाज के शरीर को धारण कर रखा है। वात्स्यायन-एक वैदिक ऋषि, जिन्होंने काम-सूत्र (काम-शास्त्र) की रचना की है।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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