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पारिभाषिक शब्दकोश
ग्रन्थि - गांठ |
ग्रामधर्म - काम-वासना या भोगेच्छा ।
ग्लान - वृद्ध; रोगी और अस्वस्थ ।
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घातिक-कर्म–ज्ञान-दर्शन, सुख और वीर्य शक्ति, आत्मा के इन चार मूल गुणों की घात करने वाले, अर्थात् इन्हें आवृत करने वाले ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय कर्म घातिक कर्म कहलाते हैं ।
घ्राणेन्द्रिय- नाक, नासिका ।
चक्रवर्ती-सम्पूर्ण भरत क्षेत्र पर एकच्छत्र राज्य करने वाला शासक ।
चण्डकौशिक-सर्प-एक भयंकर विषधर (सर्प) जिसकी फुंकार से मनुष्य क्या, पशु-पक्षी भी मर जाते थे, पेड़-पौधे पत्र - पुष्प एवं फलों से रहित हो जाते थे, जिसको निर्भयता पूर्वक भगवान महावीर ने उसकी बाम्बी पर जाकर उपदेश दिया और उसे निर्विष बनाकर उसके एवं जनता के जीवन को शान्तिमय बनाया।
चतुरिन्द्रिय - जिन प्राणियों के शरीर, जिह्वा, नाक और आंख चार इन्द्रियां हैं। चौदह-पूर्व- तीर्थंकर भगवान द्वारा उपदिष्ट विशाल ज्ञान, जो वर्तमान में उपलब्ध नहीं है।
चार ज्ञान - 1 - मतिज्ञान, 2 - श्रुत ज्ञान, 3 – अवधि ज्ञान, 4 - मनः पर्यव -ज्ञान और 5- केवल ज्ञान | ये पांच ज्ञान सम्यग् ज्ञान माने गए हैं। इसमें से पहले चार
ज्ञान ।
चार याम - अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह व्रत ।
चारित्र - आत्मा में स्थित कर्म-प्रवाह को समाप्त करने की एक साधना प्रक्रिया | चारित्र धर्म - आगम में उपदिष्ट साधना को जीवन में साकार रूप देना ।
चारित्र मोहनीय - एक प्रकार का आवरण, जिसके रहते आत्मा त्याग - मार्ग को स्वीकार नहीं कर पाता ।
चार्वाक - एक भारतीय दर्शन, जो आत्मा के स्वतन्त्र अस्तित्व और नरक स्वर्ग को नहीं मानता।