SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1001
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 912 . श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध खुदा-ईश्वर। खेदज्ञ-अग्नि की दहन शक्ति को जानने वाला। गजसुकमाल-कृष्ण-वासुदेव के लघु-भ्राता और भगवान अरिष्टनेमिनाथ के सुशिष्य, जिन्होंने जिस दिन दीक्षा ग्रहण की, उसी दिन सिद्धत्व को पा लिया। ___ गणधर-गण (साधु-साध्वी के समूह) को धारण करने वाले, अर्थात् गण की व्यवस्था करने वाले। तीर्थंकरों की अर्थ रूप वाणी को सूत्र रूप में ग्रथित करने वाले। भगवान महावीर के इन्द्रभूति गौतम आदि 11 गणधर थे। गणि-पिटक-ज्ञान का पिटारा-ज्ञान-मंजूषा (Treasure of Knowldge)। गति-यूं तो गति का अर्थ होता है-चलना, पर नरक, तिर्यंच, मनुष्य व देव इन चार उत्पत्ति स्थानों को भी गति कहते हैं। यहां गति का अर्थ उक्त चार गति रूप संसार है। गति-आगति-जीव के आवागमन के स्थान। गति-त्रस-जिन जीवों ने त्रस नाम कर्म एवं गति. का बन्ध होने से त्रसहलन-चलन करने वाले, जीवन को प्राप्त किया है, उन्हें गति-त्रस कहते हैं। गुण-किसी वस्तु में रहने वाली पर्याय विशेष और शब्दादि विषय, विषय-विकार को भी गुण कहते हैं। गुणार्थी-विषय-वासना का अभिलाषी। गुणी-वह वस्तु विशेष, जिसमें गुण रहते हैं। गुप्ति-मन-वचन और काय (शरीर) योग का गोपन करना। गुरुत्व-भारीपन। गौतम स्वामी-भगवान महावीर के प्रथम और प्रमुख शिष्य एवं प्रथम गणधर। गौशालक-मखली जाति का एक व्यक्ति, जो भगवान महावीर की प्रतिष्ठा को देखकर उनकी तरह उनके साथ रहने लगा और उन्हें अपना गुरु मानने लगा। वह 6 वर्ष तक भगवान महावीर के साथ रहा। उसके बाद अलग होकर उसने अपना आजीवक संप्रदाय चलाया।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy