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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध ___ चूलिका-मूल ग्रंथ के विषय में रही हुई कमी को पूर्ण करने या विषय को स्पष्ट करने के लिए मूल ग्रन्थ के साथ जोड़ा गया ग्रंथ या अध्ययन।
चोलपट्टक-धोती के स्थान में पहनने का वस्त्र। छट्टा गुणस्थान-पूर्णतः त्याग मार्ग स्वीकार करने का स्थान।
छद्मस्थ-जिन प्राणियों को संपूर्ण (केवल) ज्ञान नहीं हुआ है। जिनमें अभी तक राग-द्वेष के भाव स्थित हैं।
जम्बू स्वामी-भगवान महावीर के पंचम गणधर और प्रथम आचार्य के सुशिष्य तथा भगवान महावीर के शासन के द्वितीय शास्ता-आचार्य। ___जयन्ती-भगवान महावीर की ज्ञानवती एवं सेवा-निष्ठ उपासिका जिसने अनेक बार भगवान से प्रश्न पूछे थे।
जरायुज-जेर से आवृत उत्पन्न होन वाले प्राणी, गाय-भैंस आदि।
जातिस्मरण ज्ञान-आत्मा की एक शुद्ध अवस्था या भावना; जिसके द्वारा आत्मा इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना अपने निरन्तर सन्नी पंचेन्द्रिय (मन युक्त पशु-पक्षी या मनुष्य) के किए गए अनेक या 900 भवों को देख लेता है।
जिनकल्प-साधु-जीवन की विशिष्ट साधना। संघ से अलग रहकर एकाकी साधना करने वाले, दूसरों को उपदेश न देने वाले, शिष्य न बनाने वाले, अपने शरीर की भी सार-सम्भाल न करने वाले, नग्न रहने वाले साधु की मर्यादा।
जिनेंद्र-राग-द्वेष के विजेता।
जिनेश्वर-राग-द्वेष रूप समस्त भाव शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले या मनोविकारों के विजेता।
जिनोपदिष्ट-राग-द्वेष विजेता तीर्थंकर भगवान के द्वारा उपदेशित-प्ररूपित।
जैनदर्शन-जिन भगवान तीर्थंकरोपदिष्ट सिद्धान्त, अर्थात् जो आप्त पुरुषों द्वारा उपदिष्ट जैनागमों को प्रमाण मानता है। ____ तप-आहार-पानी, स्वाद, रस एवं कषायों-क्रोध मान, माया, लोभ तथा राग-द्वेष का त्याग करना।