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पद्मांग- पद्म,
की अपेक्षा उत्तरोत्तर चौरासी लाख गुणा करने से हुहुकांग- हुहुक, उत्पलांग-उत्पल, नलिनांग-नलिन, अक्षनिकुरांग- अक्षनिकुर, अयुतांग - अयुत, नयुतांग- नयुत, प्रयुतांग- प्रयुत, चूलिकांग - चुलिका, शीर्षप्रहेलिकांग- शीर्षप्रहेलिका तक पहुंच जाती है। यदि इनकी गणना अंकों में की जाए तो निम्नलिखित प्रकार से की जाती है, जैसे कि
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7582, 6325, 30730, 1024, 1157, 9735, 6997, 5696, 4062, 1896, 68480, 801832960000000000000000000000000000000000000000000000000
000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
0000000000000000000000000000000000। इन अंकों में संख्यात की पूर्णता हो जाती है। संख्यात तीन प्रकार का है, जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । जघन्य संख्यात 2, 3 से लेकर उत्कृष्ट संख्यात में से एक इकाई न्यून करने के मध्यम संख्यात बनता है। जो अंक ऊपर दिए हैं, इनसे उत्कृष्ट संख्यात बनता है। जघन्य और उत्कृष्ट के मध्य में जो संख्याएं हैं, वे सब मध्यम संख्यात कहलाती हैं।
संख्यात का प्रयोजन
जिन मनुष्य और तिर्यंचों की आयु उ. करोड़ पूर्व की है, वे संख्यात वर्ष की आयु वाले हैं। जिनकी उससे अधिक है, वे असंख्यात वर्षायुष्क कहलाते हैं। यह नियम नारक और देवगति का नहीं है। वहां दस हजार वर्ष से लेकर शीर्षप्रहेलिका तक जिन-जिन देव और नैरयिकों की आयु है, वे सब संख्यात वर्ष की आयु वाले कहे जाते हैं। संख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य और तिर्यंच चारों गतियों में उत्पन्न हो सकते हैं, किन्तु असंख्यात वर्ष की आयु वाले केवल देवगति में ही उत्पन्न हो सकते हैं। -
नारकी और देवता आयु पूर्ण होने के बाद संख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य और तिर्यंच बन सकते हैं। सर्वविरति, देशविरति और अविरति सम्यग्दृष्टि मनुष्य संख्यात ही हो सकते हैं। गर्भ संज्ञी मनुष्य भी संख्यात ही हैं। संज्ञी मनुष्य की गति और आगति भी संख्यात ही है। सर्वार्थसिद्ध महाविमान में संख्यात ही देवता रहते हैं । अप्रतिष्ठान नरकावास में भी नारकी संख्यात ही हैं। रत्नप्रभा पृथ्वी में पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे पाथड़े तक संख्यात वर्ष की आयु वाले नैरयिक पाए जाते हैं। संख्यात योजनों के लम्बे-चौड़े नरकावासों में भवनों में और विमानों में संख्यात नारकी और देवता पाए जाते हैं । कोई भी सशक्त देवता या मनुष्य उत्तर वैक्रिय करे, तो संख्यात ही कर सकता है, असंख्यात नहीं। छठे गुणस्थान से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक संख्यात जीव पाए जाते हैं। एक मूहूर्त में 16777216 आवलिकाएं पाई जाती हैं। अत: यह भी संख्यात ही हैं। जीव का सबसे छोटा भव दौ सौ छप्पन आवलिकाओं का होता है। अपर्याप्त अवस्था में कोई भी जीव 256 आवलिकाएं पूरी किए बिना काल नहीं करता, यह भी संख्यात ही है। नौवें देवलोक से लेकर छब्बीसवें देवलोक तक देवता संख्यात
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