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ही उत्पन्न होते हैं और उनका च्यवन भी संख्यात ही होता है । उत्सर्पिणी काल में चौबीसवें तीर्थंकर का शासन संख्यात काल तक चलेगा। लवण समुद्र में जितनी जल की बूंदे हैं, जितने संसार में धान्य के कण हैं, जितनी विश्वभर में पुस्तकें हैं, जितने उनमें अक्षर हैं, वे सब संख्यात को अतिक्रम नहीं करते। द्वादशांग गणिपिटक में अध्ययन, उद्देशक, प्रतिपत्ति, श्लोक, पद और अक्षर सब संख्यात ही हैं। मनः पर्यवज्ञानी संख्यात संज्ञी जीवों के भावों को जानने की शक्ति रखते हैं। ऐसे भी जीव हैं, जिन्हें सिद्ध होने में संख्यात भव ही शेष रहते हैं। जिन्होंने.. तीर्थंकर नाम-गोत्र कर्म बांधा हुआ है, वे जीव भी संख्यात ही हैं। अवेदी मनुष्य भी संख्यात ही हैं। पुरुषों से स्त्रियां संख्यात गुणा अधिक हैं। आगमों में जहां कहीं भी संख्यात शब्द का प्रयोग किया है, वह दो से लेकर शीर्षप्रहेलिका के अन्तराल व पूर्णता का सूचक समझना चाहिए।
परिकर्म में असंख्यात और अनन्त द्रव्य पर्यायों का नाप-तोल है । असंख्यात 9 प्रकार का होता है, जैसे कि
1. जघन्य परित्तासंख्यात, 2. मध्यम परित्तासंख्यात, 3. उत्कृष्ट परित्तासंख्यात ।
4. जघन्य युक्तासंख्यात, 5. मध्यम युक्तासंख्यात, 6. उत्कृष्ट युक्तासंख्यात
7. जघन्य असंख्यातासंख्यात, 8. मध्यम असंख्यातासंख्यात, 9. उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात । एक आवलिका, जघन्य युक्तासंख्यात समयों के समुदाय की होती है। लब्धि अपर्याप्तक सूक्ष्म निगोदिय जीव का शरीर भी आकाश के असंख्यातं प्रदेशों को अवगाहन करता है। वे आकाश प्रदेश, कितने असंख्यात प्रदेश हैं, इनका हिसाब परिकर्म में है । प्रतर की एक श्रेणी में जितने प्रदेश हैं, वे उपर्युक्त 9 में से किसमें समाविष्ट हो सकते हैं ?
संपूर्ण प्रत में जितने आकाश प्रदेश हैं, वे किस भेद में अन्तर्भूत हो सकते हैं ? सात घन राजू में जो आकाश प्रदेश हैं, वे किसमें ? इन सबका उत्तर परिकर्म दृष्टिवाद श्रुत से मिल सकता है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश, और एक जीव इन चारों के असंख्यात–असंख्यात प्रदेश हैं, परस्पर चारों के प्रदेश तुल्य हैं और असंख्यात हैं। सूक्ष्मसाधारण वनस्पति के शरीर, प्रत्येक शरीरी, पांच स्थावर, द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक जितने शरीरी हैं, भिन्न-भिन्न आठ प्रकार के कर्मों की स्थितिबंध के असंख्यात अध्यवसाय स्थान, अनुभाग के अध्यवसाय स्थान, योगप्रतिभाग के असंख्यात स्थान, दोनों कालों के समय इन दस राशियों को एकत्रित करने पर उसे फिर तीन बार गुणा करे, अन्त में जो गुणनफल निकले, उसमें से एक कम करने से उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात होता है। इसके विषय में विस्तृत वर्णन कर्मग्रन्थ के चौथे भाग में पाठक देख सकते हैं। पृथ्वीकायिक जीव कितने असंख्यात हैं ? अप्काय में कितने ? एवं वनस्पति काय तक कितने जीव हैं ? इन सबका उत्तर परिकर्म दृष्टिवाद से मिल सकता है। वे 9 प्रकार के असंख्यातों में किस
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