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एक ही प्रकार की प्रवृत्त हुईं और दसवें, ग्यारहवें मेतार्य और प्रभास इन गणधरों की वाचनाएं भी एक ही प्रकार की थीं, इस प्रकार नौ गणों की नौ तरह की वाचनाएं प्रवृत्त हुईं। इस प्रकार द्वादशांग गणिपिटक की नौ धाराएं प्रवहमान हुईं। उनमें से आजकल जो भी आगम विद्यमान हैं, वे सब श्रीसुधर्मास्वामी की वाचनाएं हैं, शेष गणधरों की वाचनाएं व्यवच्छिन्न हो गईं। कारण कि उनकी शिष्य परम्परा नहीं चलने पाई, क्योंकि नौ गणधर तो भगवान् महावीर के होते हुए ही निर्वाण को प्राप्त हो गए। भगवान् महावीर के निर्वाण होने पर अन्तर्मुहूर्त में ही गौतम-गोत्रीय इन्द्रभूतिजी को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ और बारह वर्ष केवलज्ञान की पर्याय में रहकर 92 वर्ष की आयु पूर्ण कर वे मुक्त हुए।
गणधर या आचार्य छद्मस्थकाल में ही शिष्यों को वाचना देते हैं, क्योंकि अध्ययन और अध्यापन श्रुतज्ञान के बल से होता है। केवलज्ञान होने पर न वे गणधर कहलाते हैं और न आचार्य ही। वे देह के रहते हुए अरिहन्त और विदेह अर्थात् निर्वाण होने पर सिद्ध कहलाते हैं। सुधर्मा स्वामी 30 वर्ष गणधर रहे, बारह वर्ष आचार्य और आठ वर्ष केवलज्ञान की पर्याय में रहे। श्रीसुधर्मा स्वामीजी ने बारह वर्ष तक जम्बूस्वामी आदि अनेक मुनिवरों को अंग सूत्रों की वाचनाएं दीं। उनके शिष्यों ने भी वही शैली स्थिर रखी। चौदह पूर्वो का अध्ययन सूत्ररूप और अर्थरूप से भद्रबाहु स्वामी तक रहा, तत्पश्चात् स्थूलभद्रजी ने अभिन्न-अर्थात् सम्पूर्ण दस पूर्वो का ज्ञान सूत्र और अर्थ दोनों प्रकार से सीखा। शेष चार पूर्व सूत्ररूप से सीखे, अर्थरूप से नहीं। इस प्रकार क्रमशः दृष्टिवाद का ह्रास होते-होते वीर निर्वाण सं. 1000 वर्ष तक दृष्टिवाद का ज्ञान रहा, तत्पश्चात् वह श्रुतज्ञान का महाप्रकाशरूप दृष्टिवाद विच्छिन्न हो गया। इस युग में दीपक के सदृश 11 अंगसूत्र ही मुमुक्षुओं के जीवन को प्रकाशित कर रहे हैं, यथा समय तक भविष्य में भी प्रकाशित करते रहेंगे।
यह पहले लिखा जा चुका है कि द्वादशांग गणिपिटक सभी तीर्थंकरों के शासन में नियमेन पाया जाता है, तो क्या उनमें विषय वर्णन एक सदृश ही होता है या विभिन्न पद्धति से होता है ? इस प्रकार अनेक प्रश्न उत्पन्न होते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर निम्न प्रकार से दिए
जाते हैं
द्रव्यानुयोग, चरणकरणानुयोग और गणितानुयोग इनका वर्णन तो प्रायः तुल्य ही होता है, युगानुकूल वर्णन शैली बदलती रहती है किन्तु धर्मकथानुयोग प्रायः बदलता रहता है। उपदेश, शिक्षा, इतिहास, दृष्टान्त, उदाहरण और उपमाएं इत्यादि विषय बदलते रहते हैं। इनमें समानता नहीं पाई जाती। जैसे कि काकन्दी नगरी के धन्ना अगणार ने 11 अंग सूत्रों का अध्ययन नौ महीनों में ही कर लिया था, ऐसा अनुत्तरौपपातिक सूत्र में उल्लिखित है।
1. जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरन्ति, एए णं सव्वे अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स आवच्चिज्जा, अवसेसा गणहरा निरवंच्चा वुच्छिन्ना।
-कल्पसूत्र - *60* -