________________
रही है। अर्थात् इस भगवद्वाणी को सभी अपनी भाषा के अनुरूप समझ लेते थे। यह भाषातिशय केवल महावीर में ही न था, अपितु सभी तीर्थंकर इस अतिशय के स्वामी होते हैं। तीर्थंकर भगवान् के 34 अतिशयों में यह भाषातिशय भी है कि अर्धमागधी में प्रवचन करते समय वह भाषा उसी भाषा में परिणत हो जाती है, जिसकी जो भाषा है।'
कुछ लोगों की ऐसी धारणा है कि यह अर्धमागधी भाषा उस समय मगध के आधे भाग में बोली जाती थी। इसीलिए इसे अर्धमागधी कहा जाता है। वास्तव में ऐसी बात नहीं है, केवल शब्द मात्र की व्युत्पत्ति पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए, तीर्थकरों का अर्धमागधी भाषा में बोलना अनादि नियम है।
अर्धमागधी देववाणी है, यह इसकी दूसरी विशेषता है। आगम में एक स्थल पर भगवान् महावीर से गणधर गौतम पूछते हैं-भगवन् ! देव किस भाषा में बोलते हैं? कौन-सी भाषा उन्हें अभीष्ट है? उत्तर.में सर्वज्ञ महावीर ने फरमाया-गौतम ! देव अर्धमागधी में बोलते हैं और वही भाषा उन्हें अभीष्ट एवं रुचिकर है। उपर्युक्त प्रमाणों से निःसन्देह सिद्ध हो जाता है कि अर्धमागधी स्वतन्त्र एवं तीर्थंकर और देवों द्वारा बोली जाने के कारण सर्वश्रेष्ठ भाषा है। देव तो स्वर्ग में रहने वाले हैं, उन्हें मगध के आधे भाग में बोली जाने वाली भाषा में बोलना क्योंकर अभीष्ट हो सकता है? इसका उत्तर यही है कि अर्धमागधी स्वतन्त्र, सर्वप्रिय एवं श्रुतिसुखदा भाषा है। प्राकृत और संस्कृत ये दोनों अर्धमागधी की सहोदरा भाषाएं हैं, इन दोनों का अर्धमागधी भाषा को पूर्ण सहयोग मिला हुआ है। यदि अर्धमागधी को लोकोत्तरिक भाषा कहा जाए, तो इसमें कोई अत्युक्ति नहीं होगी। नन्दीसूत्र की भाषा भी अन्य आगमों की भान्ति सुगम और सारगर्भित अर्धमागधी भाषा ही है। प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमाण
.. 1. युक्ति-सिद्ध ज्ञान को प्रमाण कहते हैं, जो ज्ञान पदार्थ को अनेक दृष्टिकोणों से जानने वाला हो वह प्रमाण है, यह प्रमाण का सामान्य लक्षण है, किन्तु उसके नि:शेष लक्षण निम्न प्रकार से हैं जो ज्ञान बिना इन्द्रिय और बिना किसी सहायता के सीधा आत्मा की योग्यता के बल से उत्पन्न होता है, वह प्रत्यक्ष प्रमाण कहलाता है। इसके विपरीत जो ज्ञान, इंद्रिय और मन की सहायता की अपेक्षा रखता है वह परोक्ष प्रमाण है।
1. सव्वभासाणुगामिणीए सरस्सईए जोएण णीहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासइ, अरिहा धम्म परिकहेइ। तेसिं
सव्वेसिं आरियमणारियाणं अगिलाए धम्म आइक्खइ, सा वि य णं अद्धमागहा भासा तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं अप्पणो स-भासाए परिणामेणं परिणमइ।
-औपपातिक सूत्र सू. 56 2. देवा णं भन्ते। कयराए भासाए भासन्ति ? कवरा वा भासा भासिज्जमाणो विसिस्सइ? गोयमा ! देवाणं अद्धमागहीए
भासाए भासन्ति, सावि य णं अद्धमागही भासा भासिज्ज्माणी विसिस्सइ। भगवती सूत्र, श.5, उ. 4