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आगम और साहित्य
जैन परिभाषा में तीर्थंकर, गणधर तथा श्रुतकेवली प्रणीत शास्त्रों को आगम कहते हैं। अर्थ रूप से तीर्थंकर के प्रवचन और सूत्र रूप से गणधर एवं श्रुतकेवली प्रणीत साहित्य को आगम कहते हैं। जिस ज्ञान का मूलस्रोत तीर्थंकर भगवान हैं, आचार्य परम्परा के अनुसार जो श्रुतज्ञान आया है, आ रहा है, वह आगम' कहलाता है, अर्थात् आप्त वचन को आगम कहते
हैं।
जिस के द्वारा पञ्चास्तिकाय, नव पदार्थ जाने जाएं, वह आगम' कहलाता है, इस दृष्टि - से केवलज्ञान, मन:पर्यवज्ञान, अवधिज्ञान, 14 पूर्वधर, 10 पूर्वधर तथा 9 पूर्वधर इनका जाना हुआ श्रुतज्ञान आगम कहलाता है।
सूत्र, अर्थ और उभयरूप तीनों को आगम' कहते हैं। जो गुरुपरम्परा से अविच्छिन्न से आ रहा है, वह आगम' कहलाता है, एवं जिसके द्वारा सब ओर से जीवादि पदार्थों को. जाना जाए, वह आगम है। जिनकी रचना आप्त पुरुषों के द्वारा हुई, वे आगम हैं। आप्त वे कहलाते हैं, जिन में 18 दोष न हों, जिनका जीवन ही शास्त्रमय तथा चारित्रमय बन गया है, उन्हें आप्त कहते हैं। जो ज्ञान रागद्वेष से मलिन हो रहा है, वह ज्ञान निर्दोष नहीं होता। उस में भूलें व गलतियां रह जाती हैं। वह आगम प्रमाण की कोटि में नहीं आ सकता। जैन दर्शन किसी भी आगम या शास्त्र को अपौरुषेय नहीं मानता। उसका रचयिता कोई न कोई अवश्य ऐसा व्यक्ति हुआ है, जिसने वेद व शास्त्र की रचना की। जैन के जितने मान्य आगम हैं, उनके रचयिता कौन हुए हैं, इस का विवरण पूर्णतया मिलता है। वर्तमान में जो आगम हैं, उन के रचयिता सुधर्मास्वामी तथा अन्य श्रुतकेवली व स्थविर हैं, जिनके नाम निर्देश मिलते हैं। नदी सूत्र भी आगम है।
जैन परम्परा के अनुसार आगम तीन प्रकार के हैं, जैसे कि सूत्रागम, अर्थागम और तदुभयागम। इनमें से अर्थागम का आगमन सर्वज्ञ सर्वदर्शी तीर्थंकर भगवान से हुआ है। सूत्रागम गणधर कृत हैं। और तदुभयागम उपर्युक्त दोनों से निर्मित है, अर्थात् श्रुतकेवली व स्थविरों के द्वारा प्रणीत तदुभयागम कहलाता है।
1. आचार्यपारम्पर्येणागतः, आप्तवचनं वा अनु., 38
2. आगम्यन्ते - परिच्छिद्यन्तेऽर्था अनेनेति, केवलमन:पर्ययावधिपूर्वचतुर्दशकदशकनवकरूपः, ठाणा. 317
3. सूत्रार्थोभयरूपः, आव.524
4. गुरुपारम्पर्येणागच्छतीति आगमः, आ-समन्तात् गम्यन्ते, ज्ञायन्ते जीवादयः पदार्था अनेनेति वा, अनु. 219/5, आप्तप्रणीतः आचा. 48
5. अनुयोगद्वार सूत्र का उत्तरार्द्ध भाग सू. 147
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