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________________ अब दूसरी शैली से आगमों का वर्णन करते हैं-आगम तीन प्रकार के होते हैं। अत्तागमे, अनन्तरागमे, परस्परागमे। आत्म और आप्त इन शब्दों का प्राकृत भाषा में 'अत्त' शब्द बनता है। जो अर्थ तीर्थंकर भगवान प्रतिपादन करते हैं, वह आगम, आत्मागम या आप्तागम कहलाता है। जो अर्थ तीर्थंकर भगवान के मुखारविन्द से गणधरों ने सुना है, वह अनन्तरागम कहलाता है। जो गणधरों ने अर्थ सुनकर सूत्रों की रचना की है, वे सूत्र गणधरकृत होने से आत्मागम या आप्तागम कहलाते हैं। जो सूत्रागम हैं, वे अनन्तरागम भी हैं और आत्मागम भी। ___ जो आगमज्ञान उनके शिष्यों में है, वह सूत्र की अपेक्षा से अनन्तरागम है और अर्थ की अपेक्षा परम्परागम। प्रशिष्यों से लेकर जब तक आगमों का अस्तित्व रहेगा, तब तक अध्ययन और अध्यापन किए जाने वाले वे सब परम्परागम कहलाते हैं। ___ नन्दी सूत्र का अन्तर्भाव तदुभयागमे और परम्परागमे में होता है। उक्त तीनों प्रकार के आगम सर्वथा प्रामाणिक हैं। आगमों में अधिकार का विवरण । श्रुतस्कन्ध-अध्ययनों के समूह को स्कन्ध कहते हैं। वैदिक परम्परा में श्रीमद्भागवत पुराण के अन्तर्गत स्कन्धों का प्रयोग किया हुआ है, प्रत्येक स्कन्ध में अनेक अध्याय हैं। जैनागमों में भी स्कन्ध का प्रयोग किया है, केवल स्कन्ध का ही नहीं, अपितु श्रुतस्कन्ध का उल्लेख है। किसी भी आगम में दो श्रुतस्कधों से अधिक स्कन्धों का प्रयोग नहीं किया। आचारांग, सूत्रकृतांग, ज्ञाताधर्मकथा, प्रश्नव्याकरण और विपाकसूत्र इन में प्रत्येक सूत्र के दो भागं किए हैं, जिन्हें जैन परिभाषा में श्रुतस्कन्ध कहते हैं। पहला श्रुतस्कन्ध और दूसरा श्रुतस्कन्ध, इस प्रकार विभाग करने के दो उद्देश्य हो सकते हैं, आचारांग में संयम की आन्तरिक विशुद्धि और बाह्य विशुद्धि की दृष्टि से, और सूत्रकृतांग में पद्य और गद्य की दृष्टि से। ज्ञाताधर्मकथा में आराधक और विराधक की दृष्टि से, तथा प्रश्नव्याकरण में आश्रव और संवर की दृष्टि से, एवं विपाक सूत्र में अशुभविपाक और शुभविपाक की दृष्टि से विषय को दो श्रुतस्कन्धों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक श्रुतस्कन्ध में अनेक अध्ययन हैं और किसी-किसी अध्ययन में अनेक उद्देशक भी हैं। वर्ग-वर्ग भी अध्ययनों के समूह को ही कहते हैं, अन्तकृत्सूत्र में आठ वर्ग हैं। अनुत्तरौपपातिक में तीन वर्ग और ज्ञाताधर्मकथा के दूसरे श्रुतस्कन्ध में दस वर्ग हैं। . दशा-दश अध्ययनों के समूह को दशा कहते हैं। जिनके जीवन की दशा प्रगति की ओर बढ़ी, उसे भी दशा कहते हैं, जैसे कि उपासकदशा, अनुत्तरौपपातिकदशा, अन्तकृद्दशा, इन तीन दशाओं में इतिहास है। जिस दशा में इतिहास की प्रचुरता नहीं, अपितु आचार की प्रचुरता है, वह दशाश्रुतस्कन्ध है, इस सूत्र में दशा का प्रयोग अन्त में न करके आदि में किया 4493
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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