________________
में भी अंतर नजर आएगा। सभी फोटो में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की पर्याय पृथक्-पृथक् है। किसी फोटो में मुस्कान, किसी में शोक, किसी में रुदन, किसी में वीरता, किसी में प्रेम झलकता है और किसी में कायरता इत्यादि सब भावपर्याय हैं। इस प्रकार मनुष्य भव में उत्पाद
और व्यय की पर्याय बदलती रहती हैं किन्तु ध्रौव्य आयु पर्यन्त रहता है। मनुष्य भव भी एक द्रव्य पर्याय है, उसमें जो जीव है, वह अनादि-अनंत काल से ध्रुव है।
मातृकापद भाषा को भी कहते हैं। विश्व में जितने प्रकार की भाषाएं तथा लिपियां प्रसिद्ध हैं, उन सबकी गणना इसी अधिकार में हो जाती हैं। मनुष्य अपनी आयु में जितनी भाषाएं व लिपियां सीखता है और जानता है, उतनी भाषाएं देवता भी नहीं जानता, अन्य गति के प्राणी तो क्या जाने ? मनुष्यश्रेणिका-परिकर्म के इस अधिकार में उपरोक्त विषय संभावित हो सकते हैं।
२. एकार्थकपद-पद दो तरह के होते हैं एकार्थक और अनेकार्थक। मानुष, मनुष्य, .. मानव, मनुज ये सब एकार्थक पद हैं। हरि, गौ, सैन्धव इत्यादि पद अनेकार्थक हैं। मनुष्य वाचक जितने भी पद हैं, वे एकार्थक पद में निहित हैं, भले ही वे किसी भी भाषा के शब्द हों, एकार्थक हैं।
३. अर्थपद-मनुष्य शब्द के भी चार अर्थ होते हैं जैसे कि नाममनुष्य, स्थापनामनुष्य, द्रव्यमनुष्य और भावमनुष्य। मनुष्य जाति के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु विशेष या प्राणी का नाम मनुष्य रख दिया वह नाम मनुष्य, मनुष्य के चित्र या मूर्ति को स्थापनामनुष्य कहते हैं। जिस जीव ने मनुष्य की आयु बांध ली किन्तु वह अभी उदय नहीं हुई या कहीं मनुष्य का शव पड़ा हुआ है उक्त दोनों प्रकार के द्रव्य मनुष्य कहलाते हैं। जब मनुष्यों की आयु को भोगा जा रहा हो तब उसे भाव मनुष्य कहते हैं। संभव है इस अधिकार में मनुष्यों का विवरण उक्त प्रकार से हो।
४. पृथगाकाशपद-मनुष्य की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र, उत्कृष्ट तीन गाऊ से अधिक नहीं, शेष मनुष्य सभी मध्यवर्ती अवगाहना वाले हैं। वे चाहे समूर्छिम हैं या गर्भज, भोगभूमिज हैं या कर्मभूमिज। संभव है इस पद में उनकी अवगाहना के विषय में सूक्ष्म वर्णन हो। जिन मनुष्यों की अवगाहना एक समान है अर्थात् सदृश आकाश प्रदेशों को अवगाहित करने वाले मनुष्यों की एक श्रेणी, जो एक आकाश प्रदेश से अधिक अवगाहित करने वाले हैं, उनकी दूसरी श्रेणी। इस प्रकार आकाश के प्रदेश-प्रदेश अधिक करते-करते यावत् उत्कृष्ट अवगाहना वाले जितने मनुष्य हैं, उनकी एक श्रेणी इस प्रकार अवगाहना की असंख्यात श्रेणियां बन जाती हैं। इस पद के गम्भीर चिन्तन करने से ऐसा अर्थ अनुभूत हुआ। ___५. केतुभूत-केतुशब्द ध्वज के लिए भी रूढ है और धूमकेतु के लिए भी। वैसे ही जिन मनुष्यों का अभ्युदय कुल, गण, नगर, राष्ट्र तथा विश्व के लिए भयप्रद और उपद्रव
15268