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________________ गुरु की ओर से और उत्तर शिष्य की ओर से दिया जाता है । इसको प्रसिद्धि कहते हैं। , जैसे पहले चालना में प्रश्न दिए हुए हैं, उन्हीं का यहां उत्तर देते हैं-नन्दि या नन्दी दोनों शब्द शुद्ध हैं । 'टुनदि समृद्धौ' धातु से इनकी निष्पत्ति हुई है । नन्दिः शब्द पुल्लिंग है और नन्दी शब्द स्त्रीलिङ्ग है, दोनों का अर्थ भी एक ही है, किन्तु प्राचीन पद्धति में आगम के लिए नन्दी शब्द प्रयुक्त है, जो कि आर्ष है । हमें उसी परम्परा को स्थिर रखना है। जिनभद्रगणी जी ने विशेषावश्यक भाष्य में स्त्रीलिङ्ग में नन्दी शब्द का प्रयोग किया है, जैसे कि “मंगलमहवा नन्दी, चउव्विहा मंगलं च सा नेया । दव्वे तूरसमुदओ, भावम्मि य पंचनाणाई ॥" इससे सिद्ध होता है कि दीर्घ ईकार सहित नन्दी ऐसा लिखना ही सर्वथोचित है। "आगमोदय समिति" द्वारा प्रकाशित मलयगिरि वृत्ति में नन्दीसूत्रम्, नन्दीवृत्तिः, नन्दीनिक्षेपाः इस प्रकार शब्द प्रयोग किए हुए हैं। समस्तपद में भी दीर्घ ईकार सहित नन्दी का प्रयोग किया है। यदि भावनन्दी के अतिरिक्त नामनन्दी, स्थापना नन्दी, द्रव्यनन्दी इनका ह्रस्व इकार सहित पुल्लिंग में प्रयोग किया जाए, तो कोई दोषापत्ति नहीं है। यह शब्द विषयक समाधान है । चिर काल से खोई हुई निजी अमूल्य निधि मिल जाने से व्यक्ति को जैसे असीम आनन्द की अनुभूति होती है, वैसे ही ज्ञान भी आत्मा की निजी संपत्ति है । नन्दी सूत्र उसकी तालिका है। इसको स्पष्ट करने लिए निम्न उदाहरण है___एक सेठ ने अनेक बहुमूल्य रत्नों से परिपूर्ण मंजूषा किसी अज्ञात स्थान में रख दी और साथ ही बही में उसका उल्लेख कर दिया । बही में उन रत्नों की संख्या, गुण, नाम, मूल्य और लक्षण आदि की सूची दे दी। अकस्मात् हृदय की गति रुक जाने से वह सेठ मृत्यु को प्राप्त हो गया। उसने अपने पुत्रों को न उस मंजूषा का निर्देश किया और नं बही उनकी नजरों में रखी, कालान्तर में अनायास बही मिली और उस सूची के अनुसार मंजूषा और रत्न मिले। अपनी निजी संपत्ति मिल जाने पर जैसे उन्हें आनन्द की अनुभूति हुई, वैसे ही नन्दी भी आत्मगुणों की बही है। जिसका देववाचक जी ने इतस्ततः बिखरे हुए ज्ञान के प्रकरणों को तयुगीन आगमों से या ज्ञानप्रवाद पूर्व में से संकलित किया । वह संकलन सौभाग्य से श्रीसंघ को मिला। अथवा जो नन्दीसूत्र पहले व्यवच्छिन्न प्रायः हो रहा था, उसका पुनरुद्धार 50 मंगल गाथाओं के साथ किया, ताकि भविष्य में यह सूत्र दीर्घकाल पर्यन्त सुरक्षित रहे। इसके अध्ययन करने से परमानन्द की प्राप्ति होती है, इसलिए इस आगम का नाम नन्दी रखा है। इसको अर्थविषयक प्रसिद्धि-समाधान कहते हैं । इस क्रम से यदि उपाध्याय या गुरु शिष्यों को अध्ययन कराए तो वह ज्ञान विज्ञान के रूप में परिणत हो सकता है । का भी है
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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