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________________ है । सूत्र कारण है और अर्थ कार्य है । अनुगम दोनों का अनुसरण करने वाला है । अनुगम के बिना आगमों में प्रवृत्ति नहीं होती । अनुगम- अध्ययन की सफल पद्धति है, यह पद्धति छः प्रकार की होती है १. संहिता-अध्ययन का सबसे पहला क्रम है- वर्णों का या सूत्र का शुद्ध उच्चारण करना । शुद्ध उच्चारण के बिना जं वाइद्धं, वच्चामेलियं, हीणक्खरं, अच्चक्खरं, पयहीणं, घोसहीणं, ये अतिचार लगते हैं, जिनसे श्रुतज्ञान की आराधना नहीं, अपितु विराधना होती है। २. पद - यह पद सुबन्त है, या तिङन्त है, अव्यय है, या क्रियाविशेषण है, इस प्रकार के पदों का ज्ञान होना भी अनिवार्य है। जब तक इस प्रकार पदों का ज्ञान नहीं होता, तब तक सूत्र और अर्थ का ज्ञान नहीं हो सकता। जैसे नन्दी में 57 सूत्र हैं, उनमें से एक सूत्र में कितने पद हैं, उनका ज्ञान होना भी आवश्यकीय है। ३. , पदार्थ - जितने पद हों, उनका अर्थ भी जानना चाहिए । प्रत्येक पद का ज्ञान और उसके अर्थ का ज्ञान जब तक नहीं होता, तब तक आगे अध्ययन में प्रगति नहीं हो सकती, जैसे देवा - देवता, वि-भी, तं - उसको, नमसंति - नमस्कार करते हैं, जस्स - जिसका, धम्म-धर्म में, सया - सदा, मणो-मन है, इस प्रकार पदों के अर्थ जानने का प्रयास करना पदार्थ है । 1 ४. पदविग्रह-पदार्थ हो जाने के पश्चात् पदविग्रह करना, जैसे नन्दति नन्दयत्यात्मानमिति नदी जो आत्मा को आनन्दित करता है, उसे नन्दी कहते हैं । यदि समस्तपद हों, तो उनका पदविग्रह करके अर्थ करना चहिए । जो पदविग्रह सूत्र और अर्थ के अनुरूप हो, वैसा विग्रह करना, इस विधि से अर्थ बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है । ५. चालना - पदविग्रह के अनन्तर मूलसूत्र पर या अर्थ पर शंका, प्रश्न या तर्क करने का अभ्यास करना, जैसे प्रस्तुत सूत्र का नाम किसी प्रति में ह्रस्व इकार सहित लिखा होता है और किसी में दीर्घ ईकार सहित । वस्तुतः शुद्ध कौन-सा शब्द है, नन्दि: ? या नन्दी ? इनकी व्युत्पत्ति किस धातु से हुई है ? ये दोनों शब्द किस लिग में रूढ़ हैं, इस प्रकार शब्द विषयक प्रश्न करने को शब्द चालना कहते हैं । इस आगम को नन्दी क्यों कहते हैं, नन्दी का और ज्ञान का परस्पर क्या सम्बन्ध है, इस प्रकार अनेक प्रश्न अर्थ विषयक किए जा सकते हैं, इसे अर्थ चालना कहते हैं । ६. प्रसिद्धिः-प्रसिद्धि का अर्थ धारणा या समाधान भी होता है । शंका का समाधान करना, प्रश्न का उत्तर देना, कभी शिष्य की ओर से प्रश्न होता है, उसका उत्तर गुरु देते हैं और कभी प्रश्न भी गुरु की ओर से तथा उत्तर भी गुरु की ओर से दिया जाता है। कभी प्रश्न *41*
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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