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विरचयन्ति, पश्चादाचारादिकम्,-अत्र चोदक आह नन्विदं पूर्वापरविरुद्धं यस्मादादौ निर्युक्तावुक्तं-सव्वेसिं आयारो पढमो इत्यादि सत्यमुक्तं, किन्तु तत्स्थापनामधिकृत्योक्तमक्षररचनामधिकृत्य पुनः पूर्वं, पूर्वाणि कृतानि, ततो न कश्चित् पूर्वापरविरोधः।" ___ यद्यपि मूल सूत्र में चौदह पूर्वो के नामोल्लेख मिलते हैं, इसके अतिरिक्त उनके अन्तर्गत विषय, पद परिमाण, इत्यादि विषयों का न प्रस्तुत सूत्र में और न अन्य आगमों में इसका उल्लेख मिलता है, तदपि चूर्णिकार और वृत्तिकार निम्न प्रकार से उनके विषय, पद. परिमाण, ग्रंथाग्र इत्यादि के विषय में कहते हैं
१. उत्पादपूर्व-इसमें सब द्रव्य और पर्यायों के उत्पाद-उत्पत्ति की प्ररूपणा की गई है, इसमें एक करोड़ पदपरिमाण है।।
२. अग्रायणीयपूर्व-सभी द्रव्यपर्याय और जीव विशेष के अग्र-परिमाण का वर्णन किया गया है, इसके 96 लाख पद हैं।
३. वीर्यप्रवादपूर्व-सकर्म या निष्कर्म जीव तथा अजीव के वीर्य अर्थात् शक्ति विशेष का वर्णन है तथा 70 लाख इसके पद हैं।
४. अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व-यह वस्तुओं के अस्तित्व और खपुष्प वत् नास्तित्व तथा प्रत्येक द्रव्य में स्वरूप से अस्तित्व और पररूप से नास्तित्व प्रतिपादन करता है। इसके 60 लाख पद हैं।
५. ज्ञानप्रवादपूर्व-मति आदि पांच ज्ञान का इसमें विस्तृत वर्णन है। इसका पद परिमाण एक कम एक कोटी है।
६. सत्यप्रवादपूर्व-इसमें सत्य, असत्य, मिश्र एवं व्यवहार भाषा का वर्णन है। मुख्यतया सत्य वचन या संयम का वर्णन विस्तृत और जो असत्य-मिश्र ये प्रतिपक्ष हैं, असंयम भी प्रतिपक्ष है उनका वर्णन किया गया है। इसके 1 करोड़ 6 पद हैं। '
७. आत्मप्रवादपूर्व-यह पूर्व अनेक प्रकार के नयों से आत्मा का वर्णन करने वाला है। इसमें 26 कोटि पद हैं।
८. कर्मप्रवादपूर्व-यह कर्मों की 8 मूल तथा उनकी उत्तर प्रकृतियों का बन्ध, स्थिति, अनुभाग, प्रदेश, ध्रुव-अध्रुव-जीव विपाकी, क्षेत्रविपाकी, पुद्गल-विपाकी, निकाचित, निधत्त अपवर्तन, उद्वर्तन एवं संक्रमण आदि अनेक विषयों का विवेचन है। इसके 1 करोड़ 80 लाख पद हैं।
९. प्रत्याख्यानपूर्व-यह मूलगुणप्रत्याख्यान, उत्तरगुणप्रत्याख्यान, देशप्रत्याख्यान, सर्वप्रत्याख्यान तथा उनके भेद-प्रभेद एवं उपभेदों का वर्णन करने वाला पूर्व है, इसके 84 लाख पद हैं।
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