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________________ भावार्थ-वह मनुष्यश्रेणिका परिकर्म कितने प्रकार का है ? मनुष्यश्रेणिका परिकर्म १४ प्रकार का प्रतिपादन किया है, जैसे १. मातृकापद, २. एकार्थकपद, ३. अर्थपद, ४. पृथगाकाशपद, ५. केतूभूत, ६. राशिबद्ध, ७. एकगुण, ८. द्विगुण, ९. त्रिगुण, १०. केतुभूत, ११. प्रतिग्रह, १२. संसारप्रतिग्रह, १३. नन्दावर्त्त, १४. मनुष्यावर्त्त। इस प्रकार मनुष्यश्रेणिका परिकर्म है। __टीका-इस सूत्र में मनुष्यश्रेणिका परिकर्म का वर्णन किया गया है। संभव है, इसमें जनगणना भव्य-अभव्य, परित्तसंसारी अनन्तसंसारी, चरमशरीरी और अचरमशरीरी, चारों गति से आने वाली मनुष्य श्रेणी, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि, मनुष्यश्रेणिका, आराधक-विराधक मनुष्य श्रेणिका, स्त्री, पुरुष, नपुंसक, मनुष्यश्रेणिका, गर्भज, सम्मूर्छिम मनुष्यश्रेणिका, पर्याप्तक, अपर्याप्तक मनुष्यश्रेणिका, संयत, असंयत, संयतासंयत मनुष्य श्रेणिका, उपशमश्रेणि तथा क्षपक श्रेणिवाले मनुष्यश्रेणिका का सविस्तर वर्णन हो। ३. पृष्टश्रेणिका परिकर्म मूलम्-से किं तं पुट्ठसेणिआपरिकम्मे ? पुट्ठसेणिआपरिकम्मे, इक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा १. पाढोआगा (मा) सपयाई, २. केउभूयं, ३. रासिबद्धं, ४. एगगुणं, ५. दुगुणं, ६. तिगुणं, ७. केउभूयं, ८. पडिग्गहो, ९. संसारपडिग्गहो, १०. नंदावत्तं, ११. पुट्ठावत्तं, से त्तं पुट्ठसेणिआपरिकम्मे। छाया-अथ किं तत्पृष्टश्रेणिकापरिकर्म ? पृष्टश्रेणिकापरिकर्म एकादशविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा १. पृथगाकाशपदानि, २. केतुभूतम्, ३. राशिबद्धम्, ४. एकगुणम्। ५. द्विगुणम्, ६. त्रिगुणम्, ७. केतुभूतम्, ८. प्रतिग्रहः, ९. संसारप्रतिग्रहः, १०. नन्दावर्त्तम्, ११. पृष्टावतम्, तदेतत्पृष्टश्रेणिकापरिकर्म। भावार्थ-वह पृष्टश्रेणिकापरिकर्म कितने प्रकार का है ? पृष्टश्रेणिकापरिकर्म ११ प्रकार का है, जैसे १. पृथगाकाशपद, २. केतुभूत, ३. राशिबद्ध, ४. एकगुण, ५. द्विगुण, ६. त्रिगुण, ७. केतुभूत, ८. प्रतिग्रह, ९. संसारप्रतिग्रह, १०. नन्दावर्त्त, ११. पृष्टावत। यह पृष्टश्रेणिकापरिकर्म श्रुत है। टीका-इस सूत्र में पृष्टश्रेणिका परिकर्म के 11 भेद किए हैं। स्पृष्ट और पृष्ट दोनों का . प्राकृत में 'पुट्ठ' शब्द बनता है। हो सकता है, इसमें लौकिक तथा लोकोत्तरिक प्रश्नावलियां हों, उनके मुख्य स्रोत 11 हैं, सभी प्रकार के प्रश्नों का अन्तर्भाव उक्त 11 में ही हो जाता
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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