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विद्याओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त श्रमण-निर्ग्रन्थों का नागकुमारों और सुपर्णकुमारों के साथ दिव्य संवादों का कथन किया गया है। प्रस्तुत सूत्र में इसके 45 अध्ययन वर्णन किए हैं और इसका एक श्रुतस्कन्ध है।
समवायांग सूत्र में प्रश्न व्याकरण का परिचय तथा नन्दीसूत्र में दिए गए परिचय में कहीं सदृशता है और कहीं विसदृशता है। शेष पूर्ववत् दोनों सूत्रों में पाठ समान ही हैं ।
स्थानांग सूत्र के दसवें स्थान में प्रश्न व्याकरणदशा के दश अध्ययन निम्नलिखित हैंपण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा
१. उवमा, २. संखा, ३. इसिभासियाई, ४. आयरियभासियाई, ५. महावीर भासियाई, ६. खोमगपसिणा, ७. कोमलपसिणाई, ८. अद्दागपसिणाई, ९. अंगुट्ठपसिणाई, १०. बाहुपसिणाइं। प्रश्नव्याकरणदशा इहोक्तरूपा दृश्यमानास्तु पंचाश्रवपञ्चसंवरात्मिका इतीहोक्तानां तूपमादीनामध्ययनानामक्षरार्थः प्रतीयमान एवेति नवरं, पसिणाइं ति प्रश्नविद्या यकाभिः क्षौमकादिषु देवतावतारः क्रियत इति, तत्र क्षौमकं वस्त्रं, अद्दागो - आदर्शो ऽगुष्ठो हस्तावयवो बाहवो भुजा इति ।
इस वृत्ति से यह सिद्ध होता है कि वर्तमान में केवल उक्त सूत्र के पांच आश्रव और पांच संवर रूप दस अध्ययन ही विद्यमान हैं। अतिशय विद्या वाले अध्ययन दृष्टिगोचर नहीं होते। तथा जो अंगुष्ठ आदि प्रश्न कथन किए गए हैं, उनका भाव यह है कि अंगुष्ठ आदि में देव का आवेश होने से प्रतिवादी को यह निश्चित होता है कि मेरे प्रश्न का उत्तर इस मुनि के अंगुष्ठ आदि अवयव दे रहे हैं। यह भी स्वयं सिद्ध है कि यह सूत्र मंत्र और विद्याओं में अद्वितीय था। चूर्णिकार का भी यही अभिमत है। वर्तमान काल के प्रश्नव्याकरण सूत्र में दो श्रुतस्कन्ध हैं। पहले श्रुतस्कन्ध में क्रमश: हिंसा, झूठ, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह का सविशेष वर्णन है। दूसरे श्रुतस्कन्ध में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का अद्वितीय वर्णन है। इनकी आराधना करने से अनेक प्रकार की लब्धियों की प्राप्ति का वर्णन है । जिज्ञासुओं को यह सूत्र विशेष पठनीय और मननीय है | सूत्र 55 ।।
दिगम्बर मान्यतानुसार प्रश्नव्याकरण सूत्र का विषय
प्रश्न व्याकरण में हत, नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, जय-पराजय, नाम, द्रव्य, आयु और संख्या का प्ररूपण किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें तत्त्वों का निरूपण करने वाली आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेगनी और निर्वेदनी इस प्रकार चार धर्म कथाओं का विस्तृत वर्णन है, जैसे कि नाना प्रकार की एकान्त दृष्टियों का निराकरणपूर्वक शुद्धि करके छः द्रव्य, नौ पदार्थों का जो प्ररूपण करती है, उसे आक्षेपणी कथा कहते हैं।
जिसमें पहले पर- समय के द्वारा स्व-समय में दोष बतलाए जाते हैं, तदनन्तर पर - समय की आधारभूत अनेक प्रकार की एकान्त दृष्टियों का शोधन करके स्व- समय की स्थापना
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