________________
स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं विज्ञाता, एवं चरण-करण-प्ररूपणाऽऽख्यायते, तान्येतानि प्रश्नव्याकरणानि ॥ सूत्र ५५ ।
भावार्थ-शिष्य ने प्रश्न किया-वह प्रश्नव्याकरण किस प्रकार है ?
आचार्य ने उत्तर दिया-भद्र ! प्रश्नव्याकरण सूत्र मे १०८ प्रश्न-जो विद्या वा मंत्र विधि से जाप कर सिद्ध किए हों और पूछने पर शुभाशुभ कहें, १०८ अप्रश्न-अर्थात् बिना पूछे शुभाशुभ बतलाएं, १०८ प्रश्नाप्रश्न-जो पूछे जाने पर और न पूछे जाने पर स्वयं शुभाशुभ का कथन करें-जैसे-अंगुष्ठ प्रश्न, आदर्श प्रश्न, अन्य भी विचित्र विद्यातिशय कथन किए गए हैं। नागकुमारों और सुपर्णकुमारों के साथ मुनियों के दिव्य संवाद कहे गए हैं।
प्रश्नव्याकरण की परिमित वाचनाएं हैं। संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ, संख्यात श्लोक, संख्यात निर्युक्तिएं और संख्यात संग्रहणियें तथा प्रतिपत्तिएं हैं। ..
वह प्रश्नव्याकरणश्रुत अंग अर्थ से दसवां अंग है। एक श्रुतस्कन्ध, ४५ अध्ययन, ४५ उद्देशनकाल और ४५ समुद्देशनकाल हैं। पद परिमाण में संख्यात सहस्र पदाग्र हैं। संख्यात अक्षर, अनन्त अर्थगम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस और अनन्त स्थावर हैं। शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचित, जिन प्रतिपादित भाव कहे गए हैं।, प्रज्ञापन, प्ररूपण यावत् दिखाए जाते हैं, तथा उपदर्शन से सुस्पष्ट किए जाते हैं।
प्रश्नव्याकरण का पाठक तदात्मकरूप एवं ज्ञाता तथा विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार उक्त अंग में चरण-करण की प्ररूपणा की गयी है। यह प्रश्नव्याकरण का विवरण है।
टीका-इस सूत्र में प्रश्न व्याकरणसूत्र का परिचय दिया है। आगमों के नामों से ही मालूम हो जाता है कि इनमें किस विषय का वर्णन है। प्रश्न + व्याकरण अर्थात् प्रश्न और उत्तर, इस आगम में प्रश्नोत्तर रूप से पदार्थों का वर्णन किया गया है। प्रश्नोत्तर बहत होने से इसका नाम भी बहुवचनान्तं निर्वाचित किया है। 108 प्रश्नोत्तर पूछने पर वर्णन किए गए हैं। जो विद्या या मंत्र का पहले विधिपूर्वक जाप करने से फिर किसी के पूछने पर शुभाशुभ कहते हैं और 108 विद्या या मन्त्र विधिपूर्वक सिद्ध किए हुए बिना ही पूछे शुभाशुभ कहते हैं। तथा 108 प्रश्न पूछने पर या बिना ही पूछे शुभाशुभ कहते हैं। यह आगम देवाधिष्ठित मंत्र एवं विद्या से युक्त है। इसी प्रकार वृत्तिकार भी लिखते हैं
"तेषु प्रश्नव्याकरणेषु-अष्टोत्तरं प्रश्नशतं या विद्या मंत्रा वा विधिना जप्यमानाः पृष्टा एवं सन्तः शुभाशुभं कथयन्ति ते प्रश्नाः, तेषामष्टोत्तरं शतं, पुनर्विद्या मंत्रा व विधिना जप्यमाना अपृष्टा एव शुभाशुभं कथयन्ति तेऽप्रश्नाः, तेषामष्टोत्तरशतं, तथा ये पृष्टा अपृष्टाश्च कथयन्ति ते प्रश्नाप्रश्नास्तेषामप्यष्टोत्तरं शतमाख्यायते।' इसमें अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न, आदर्श प्रश्न इत्यादि विचित्र प्रकार के प्रश्न और अतिशायी
- * 468 *