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________________ की जाती है और छः द्रव्य, नौ पदार्थों का प्ररूपण किया जाता है, उसे विक्षेपणी कथा कहते पुण्य के फल का जिसमें वर्णन हो, जैसे कि तीर्थंकर, गणधर, ऋषि, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, विद्याधर और देवों की ऋद्धियां ये सब पुण्य के फल हैं। इस प्रकार विस्तार से धर्म के फल का वर्णन करने वाली संवेगनी कथा है। पाप के फल नरक, तिर्यंच, कुमानुष में जन्म-मरण, एवं जरा-व्याधि, वेदना-दारिद्र आदि की प्राप्ति पाप के फल हैं। वैराग्य जननी कथा को निर्वेदनी कथा कहते हैं। इस कथा से श्रोता की संसार, शरीर तथा भोगों से निवृत्ति होती है। इन कथाओं के प्रतिपादन करते समय जो जिन वचन को नहीं जानता, जिसका जिन वचन में अभी तक प्रवेश नहीं हुआ, ऐसे वक्ता को विक्षेपणी कथा का उपदेश नहीं करना चाहिए क्योंकि जिन श्रोताओं ने स्व-समय के रहस्य को नहीं जाना. वे पर-समय का प्रतिपादन करने वाली कथाओं के सुनने से व्याकुलित चित्त होकर संभव है मिथ्यात्व को स्वीकार कर लें। अतः स्वसमय के रहस्य को नहीं जानने वाले पुरुष को विक्षेपणी कथा का उपदेश न देकर शेष तीन कथाओं का ही उपदेश देना चाहिए। उक्त तीन कथाओं द्वारा जिसने स्व-समय को भली-भांति समझ लिया है, जो पुण्य और पाप को समझता है और जिस तरह हड्डियों के मध्य में रहने वाला रस (मज्जा) हड्डी से संसक्त होकर ही शरीर में रहता है, उसी तरह जो जिन शासन में अनुरक्त है, जिनवाणी में जिसको किसी प्रकार की विचिकित्सा नहीं रही है, जो भोग और रति से विरक्त है और जो तप-शील तथा विनय से युक्त है, ऐसे कथावाचक को ही विक्षेपणी कथा करने का अधिकार है। उसके लिए यह अकथा भी कथा रूप हो जाती है। प्रश्नव्याकरण नामक अंग प्रश्न के अनुसार ही विषय निरूपण करने वाला ११. श्री विपाक सूत्र मूलम्-से किं तं विवागसुअं? विवागसुए णं सुकड- दुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जइ। तत्थ णं दस दुह-विवागा, दससुह-विवागा। से किं तं दुह-विवागा ? दुह-विवागेसु णं दुह-विवागाणं नगराइं, उज्जाणाई, वणसंडाई, चेइआई, रायाणो, अम्मा-पियरो, धम्मायरिआ, धम्मकहाओ, इहलोइअ-परलोइआ इड्ढि-विसेसा, निरयगमणाई, संसारभव-पवंचा, दुहपरंपराओ, दुकुलपच्चायाईओ, दुलहबोहियत्तं आघविज्जइ, से त्तं दुहविवागा। छाया-अथ किं तद् विपाकश्रुतम् ? विपाकश्रुते सुकृत-दुष्कृतानां कर्माणां - * 470*
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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